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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करके जल्दबाजीमें यह नतीजा निकाला है। अगर वे मेरे उस लेखको फिर उठाकर देखेंगे तो उनको पता चलेगा कि मैं अपने नतीजोंपर उन तथ्योंसे ही पहुँचा हूँ, जो सिद्ध किये जा चुके हैं। मेरे निर्णयपर मृत्युकी बातका असर नहीं पड़ता है। सिद्ध यह किया गया था (१) लड़की कम आयुकी थी, (२) उसमें कामेच्छा तो थी ही नहीं, (३) उसके 'पति' ने कामचेष्टामें निर्दयता बरती और (४) लड़की अब इस संसारमें नहीं है। लड़कीने आत्मघात किया तो बुरा किया, लेकिन यदि उसके 'पति' ने उसे इसलिए जला दिया कि वह उसकी पशुवृत्तिको सन्तुष्ट नहीं कर सकी तो यह और भी बुरा है। उस लड़कीकी उम्र तो खेलने-खाने और पढ़नेकी थी, पत्नीका बरताव करनेकी और अपने नाजुक कन्धोंपर गृहस्थीकी चिन्ताका भार उठानेकी या अपने 'स्वामी' की गुलामी करनेकी नहीं।

ये लेखक समाजमें एक प्रतिष्ठित पुरुष हैं। भारतमाता अपने उन बेटों और बेटियोंसे जिन्होंने ऊँचे किस्मकी शिक्षा पाई है, राष्ट्रके लिए सोचने-समझने तथा अधिक अच्छा कार्य करनेकी अपेक्षा करती है। हममें बहुतसी बुराइयाँ मौजूद हैं और वे, नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक— सभी प्रकारकी हैं। उनके लिए धैर्ययुक्त अध्ययन, सपरिश्रम अनुसन्धान और सावधानीसे काम करनेकी, सत्यताकी और उनपर स्पष्टतासे विचार करनेकी तथा गाम्भीर्यपूर्वक और निष्पक्ष निर्णय करनेकी जरूरत है। और तब तो हममें, यदि जरूरी हो तो, पूर्व और पश्चिमका-सा मतभेद भी रह सकता है। परन्तु यदि हम सच्चाईकी गहराईतक पहुँचनेकी और फिर चाहे जो हो जाये, उसपर डटे रहनेकी कोशिश न करेंगे तो इसमें कोई शक नहीं कि हम अपने-अपने धर्म अपने देश और राष्ट्रीय हितको नुकसान पहुँचायेंगे ।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ९-९-१९२६

४०७. श्रमका गौरव

उपरोक्त उद्धरण[१] श्रीयुत मधुसूदन दासके 'बिहार यंग मैन्स इन्स्टीट्यूट' के [सदस्योंके] सामने १९२४ में दिये गये भाषणसे दिया गया है। इस भाषणको मैं अपने पास इतने दिनों इसलिए रखे हुए था कि जब समुचित अवसर मिलेगा तब मैं इसके आवश्यक अंशोंका उपयोग करूँगा। भाषणकर्त्ताने जो कुछ कहा है उसमें कोई नई बात नहीं है। परन्तु उनकी इन बातोंकी असल कीमत इसमें है कि मशहूर वकील होते हुए भी वे अपने हाथोंसे काम करना न केवल नफरतकी निगाहसे नहीं देखते, बल्कि उन्होंने स्वयं बड़ी उम्रमें हाथकी कारीगरी सीखी है और वह भी बतौर शौकके नहीं, बल्कि नौजवानोंको मेहनत-मशक्कतकी कीमत समझाने और यह बतानेके लिए कि अगर वे देशके व्यवसायोंकी ओर ध्यान नहीं देंगे तो इस देशका भविष्य

  1. श्री मधुसूदनदासके भाषणका यह अंश यहां नहीं दिया जा रहा है।