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४०९. पत्र : बम्बई विश्वविद्यालयके पंजीयकको

आश्रम
साबरमती
९ सितम्बर, १९२६

प्रिय महोदय,

आपका १९२६ का पत्र सं० ८५३९, दिनांक ६ सितम्बर, १९२६ मिला। उसमें सूचित किया गया है कि सिंडीकेटने १९२६ की ऐशबर्नर पुरस्कार निबन्ध प्रतियोगिता-के लिए मुझे भी एक परीक्षक नियुक्त किया है। मुझे आपको यह सूचित करते खेद रहा है कि अन्य कारणोंकी बात जाने दीजिए, जिस ध्यान और सावधानीके साथ में उक्त परीक्षासे सम्बन्धित निबन्धोंकी जाँच करना चाहूँगा उसके लिए मेरे पास अबसे लेकर आगामी अक्तूबरतक एक क्षणका भी अवकाश नहीं है। इसलिए निवेदन है कि परीक्षकोंको नामावलिसे मेरा नाम निकाल दिया जाये।

आपका विश्वस्त,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०९९१-ए) की माइक्रोफिल्मसे।

४१०. पत्र : आ० टे० गिडवानीको

आश्रम
साबरमती
९ सितम्बर, १९२६

प्रिय गिडवानी,

आपका पत्र मिला। यहाँ आनेपर श्री वसुका समुचित स्वागत किया जायेगा। उन्होंने अभीतक अपने आनेकी कोई सूचना नहीं भेजी।

जुगलकिशोरके बारेमें सारी बात मेरे दिमागसे उतर गई है। मैं क्षमाप्रार्थी हूँ, यदि वे किसी विशेष बातके सम्बन्धमें कोई शर्त न लगायें तो मैं उन्हें लेनेके लिए तैयार हूँ। मेरे कहनेका मतलब यह है कि क्या वे खादीपर विश्वास रखते हैं? क्या वे खादी विभाग में काम करनेको तैयार होंगे? उनको वेतनके रूपमें क्या चाहिए? क्या वे विवाहित हैं ?

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ११२७४) की माइक्रोफिल्मसे।