४२०. पत्र : आर० सूर्यनारायण रावको
आश्रम
साबरमती
१० सितम्बर, १९२६
आपका पत्र मिला। साथमें दलित वर्गोंके लिए आपके द्वारा तैयार की गई योजना भी। मुझे बड़ा दुःख है कि मैं उसमें आपकी सहायता नहीं कर सकता। कारण यही है कि आपकी संस्था आंशिक रूपसे सरकारी अनुदानसे चलती है। आप जो-कुछ कर रहे हैं, उसे मैं समझता हूँ और उसकी सराहना भी करता हूँ, परन्तु मैं उसमें हाथ नहीं बँटा सकता । जो सज्जन धनसे मेरी सहायता कर रहे हैं वे ऐसा इसी खयालसे कर रहे हैं कि मैं सरकारी संगठनोंसे कतई वास्ता नहीं रखता। इसलिए कहा जा सकता है कि मेरे कामका दायरा सीमित है और धनसे मेरी सहायता करनेवाले व्यक्ति भी गिने-चुने ही हैं। कोई तजवीज खुद कितनी ही अच्छी क्यों न हो, अगर वह सरकारकी सरपरस्तीमें चले तो उसकी मदद करनेको मैं किसीसे कुछ नहीं कह सकता।
कुछ समय पूर्व आपने जो पुस्तिकाएँ मुझे भेजी थीं वे मिल अवश्य गई थीं। अभीतक उन्हें पढ़ नहीं पाया हूँ।
हृदयसे आपका,
सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९६८६) की माइक्रोफिल्मसे।