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पत्र : रेवरेंड डी० डब्ल्यू० ड्रयूको

की सुपुर्दगी या स्वत्व-त्यागके लिए लिखा गया पत्र, विधिवत् बीमा कार्यालयमें दर्ज कराने के बाद मुझे भेजें।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत विलियम डुल

मरे कोर्ट
३७५, स्मिथ स्ट्रीट

डर्बन, नेटाल

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०८०८) की फोटो-नकलसे।

४३१. पत्र : रेवरेंड डी० डब्ल्यू० ड्रयूको

आश्रम
साबरमती
१२ सितम्बर, १९२६

प्रिय मित्र,

आपका लम्बा पत्र[१] पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। उसे पाकर पुराने दिनोंकी बहुत-सी मधुर स्मृतियाँ जाग उठीं और कितने ही प्यारे-प्यारे साथियोंकी याद हो आई। आप मेरे पुत्रसे मिलने गये और उसे प्रोत्साहन दिया, यह आपका सौजन्य है। मुझे खुशी है कि उसका काम आपको पसन्द आया।

आप मुझसे मेरी यहाँकी गतिविधियोंके बारेमें जाननेकी अपेक्षा नहीं रखते; मैं ऐसी घृष्टता भी नहीं करूंगा। 'यंग इंडिया' का मेरा सम्पादन असलमें उन मित्रों को लिखी गई मेरी साप्ताहिक चिट्ठी ही है जो मेरी वर्तमान गतिविधियों में दिलचस्पी रखते हैं।

दक्षिण आफ्रिकी काण्डसे मुझे कुछ सदमा पहुँचा है। मैं इस बातके लिए कदापि तैयार नहीं था कि १९१४ में संघ सरकारकी ओरसे दिये गये वचनोंको इस तरह डंकेकी चोट भंग कर दिया जायेगा।

और अब चूंकि आपने पत्र-व्यवहार शुरू कर दिया है, मैं चाहूँगा कि आप जारी रखें। जब कभी भी आप अपने इस पुराने मित्रकी याद करना चाहें, इसे पत्र अवश्य लिखें।

हृदयसे आपका,

रेवरेंड डी० डब्ल्यू० ड्रयू
फीनिक्स, नेटाल

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०८०९) की फोटो-नकलसे।

३१-२७
  1. बारह वर्षोंकी चुप्पीके बाद २८ जुलाईको ड्रयू ने पत्र लिख कर विभिन्न विषयोंकी चर्चा करते हुए फीनिक्स प्रेसमें जा कर मणिलाल गांधीसे मिलनेकी बात भी लिखी थी।