अलौकिक मनुष्योंका भाग्य ही नहीं है और वह गुण आसमानसे नहीं उतरता, बल्कि यह हरएक व्यक्तिका कर्त्तव्य है और यही जीवनका रहस्य है।
नवजीवन, २६-९-१९२६
४९१. तार: नेगापट्टम श्रमिक संघको
[२७ सितम्बर, १९२६ से पूर्व]
उल्लिखित मामलेमें सत्याग्रह गैरकानूनी।[१]
हिन्दू, २८-९-१९२६
४९२. पत्र: रोहिणी पूर्वयाको
आश्रम
साबरमती
२९ सितम्बर, १९२६
तुम्हारा पत्र मिला। मैं तुम्हारी भील सेवा मण्डलके बारेमें लिखी रिपोर्ट अवश्य पढ़ूँगा।
क्या तुमने आश्रमके साथ अपना भाग्य जोड़नेका निर्णय अन्तिम रूपसे कर लिया है? जब यह स्पष्ट है कि तुम्हें कमसे-कम अभी थोड़े समयतक कुछ कमाना चाहिए तब ऐसा कदम उठाना अविवेकपूर्ण होगा। अगर तुम आश्रममें रहनेके लिए आ भी जाती हो तो आश्रममें शुरूमें कुछ दिन तो यहाँ रहनेकी तुम्हारी योग्यता समझनी पड़ेगी। और तब भी तुम्हें कुछ प्रतिज्ञाएँ लेनी होंगी—जैसे सत्य, अहिंसा, गरीबी अर्थात् अपरिग्रह और ब्रह्मचर्य, इत्यादि। जाँचकी यह अवधि समाप्त होनेपर इन सबका आचरण अनिवार्य बन जाता है। बड़े भाईने जो चेतावनी दी है वह बहुत कुछ सही है—विवाहके विचारसे नहीं बल्कि यहाँ जिस प्रकारका जीवन व्यतीत करना है, उसके विचारसे। यदि सादगी, गरीबी, सत्य और अहिंसाके विचार तुम्हारे हृददमें घर कर गये हैं तो तुम्हें आश्रममें शामिल होनेसे कोई नहीं रोक सकता। लेकिन तुम्हें केवल आश्रम जीवनको आजमाकर देखनेके खयालसे यहाँ नहीं आना चाहिए। खद्दरकी मसहरी तैयार करनेकी जरूरत नहीं है। लेकिन यदि तुम्हें कोई मसहरी मिल जाये तो अच्छा ही होगा।
- ↑ नेगापट्टममें रेलवे द्वारा सत्याग्रहके प्रस्तावपर स्थानीय रेलवे श्रमिक संघके अध्यक्षने गांधीजीकी सलाह माँगी थी।