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२१२. पत्र : आश्रमकी बहनोंको

सोदपुर
 
सोमवार, मार्गशीर्ष अमावस्या [ ३ जनवरी, १९२७ ]
 

प्यारी बहनो,

इस बार मुझे अभीतक तुम्हारा साप्ताहिक पत्र मिला नहीं है। आज हम खादी प्रतिष्ठान द्वारा ली गई जमीनपर बने नये मकानों में हैं। यहाँ बहुत सारे नये मकान बनाये गये हैं। ये सबके-सब नौ महीनों में तैयार हुए हैं। यहाँ ही अब यन्त्रोंके द्वारा खादी धोने, सफेद करने और रंगनेका काम चलता है। कल यहाँ भारी सभा हुई थी। इसमें बहुत सारे लोगोंने भाग लिया। मुझे लगा कि मुझे लोगोंसे चन्दा इकट्ठा करना चाहिए। मैंने माँगा और लगभग ३,५०० रुपये जमा हो गये ।

यहाँ हम जिस तरहसे प्रार्थना करते हैं, उसी तरह प्रार्थना होती है। श्लोकों का पाठ भी किया जाता है। लेकिन हमारी अपेक्षा ये लोग ज्यादा बेसुरा गाते हैं इसलिए कर्ण-कठोर लगता है, लेकिन धीरे-धीरे इसमें सुधार हो जायेगा ।

पेरीनबहन, मीठूबहन और जमनाबहन अभीतक साथ हैं। वे अपना खादीका काम करती जाती हैं। वे जो खादी अपने साथ लाई थीं उसमें से आधी खादी वे बेच चुकी हैं।

तुम सब नियमित रूपसे प्रार्थना करती हो, यह बहुत अच्छी बात है; मैं यह भी देखता हूँ कि प्रार्थनामें उपस्थिति ठीक है।

कातना यज्ञ है, यह न भूलना । 'गीता' में कहा गया है कि यज्ञ किये बिना जो अन्न खाता है वह चोरी किया हुआ अन्न खाता है । यज्ञ अर्थात् परोपकारकी दृष्टि से किया हुआ काम । ऐसा सार्वजनिक कार्य हमने चरखा माना है।

बापूके आशीर्वाद
 

गुजराती पत्र (जी० एन० ३६३३) की फोटो-नकलसे ।