कोई भाव नहीं है यह इसीका स्वाभाविक परिणाम है। प्रेम जितना अधिक मोहमुक्त होता है वह उतना ही शुद्ध होता जाता है।
तुम्हारे व्रतमें जो परिवर्तन हुए हैं, उन्हें मैं समझता हूँ। वे बिलकुल ठीक हैं।
तुम्हारा,
बापू
आज और कुछ लिखने योग्य नहीं है।
अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५२०३) से।
सौजन्य: मीराबहून
६८. पत्र: क्षितीशचन्द्र दासगुप्तको
धूलिया
१३ फरवरी, १९२७
मुझे आपके दो पत्र पता बदलकर भेजे जानेपर धूलियामें मिले। मुझे खुशी हुई कि अनिलकी हालत अब पहलेसे अच्छी है और वह पूरी तरह खतरेसे बाहर हो गया है। मैं आपको अपने दौरेका कार्यक्रम भेज रहा हूँ। कृपया मुझे अनिलका स्वास्थ्य सुधरनेकी सूचना देते रहियेगा।
मुझे अभी पता चला है कि तारिणीबाबू वर्धा से चले गये हैं। मुझे अनिलकी बीमारीसे भी स्वयं उनके बारेमें अधिक चिन्ता है। क्योंकि उनकी बीमारी शरीरमें घर कर गई है, और अनिलकी बीमारी तो एक अस्थायी संकट ही थी। इसलिये तारिणीबाबूकी यथासम्भव पूरी देख-भाल होनी चाहिए। मैं आपको सुझाव देता हूँ कि आप उन्हें डा॰ विधानराय या सर नीलरत्नके पास ले जायें। यदि आवश्यक हो तो सर प्र॰ च॰ रायसे चिट्ठी लेकर उनके पास जायें। यदि उन्हें बचाना है तो हमें यथासम्भव सर्वोत्तम डाक्टरी राय लेनेमें आगापीछा नहीं करना चाहिए।
आपके द्वारा भेजे गये नमूने अभीतक मेरे पास नहीं पहुँचे हैं। मैं जलगाँवके लोगोंको इसके बारेमें लिखूँगा।