रूपमें है, उसमें आपके शरीरका महत्त्व कम नहीं हैं। यदि हमें अपने शरीरोंके प्रति आसक्त नहीं होना चाहिए तो विरत भी तो नहीं होना चाहिए।
परन्तु दर्शनकी बात बहुत हो गई। तार पानेके बादसे मैं आपके लिए प्रार्थना करता रहा हूँ। और सुबहकी प्रार्थनाके बाद पहला काम यह पत्र लिखनेका ही किया है। ईश्वर आपको शक्ति देकर आपका मंगल करे।
आपका,
बापू
अंग्रेजी (जी॰ एन॰ १५६५) की फोटो-नकलसे।
९४. पत्र: हेमप्रभादेवी दासगुप्तको
शनिवार [१९ फरवरी, १९२७][१]
तुमको मैं क्या लिखुं? तुमारा ज्ञान तुमारी श्रद्धा तुमारी भक्ति इस समय तुमको मददगार हो। क्या अनील मर सकता है? अनीलका देह गया। अनील तो है। धीरज मत छोड़ना।
बापूके आशीर्वाद
मूल (जी॰ एन॰ १६६१) की फोटो-नकलसे।
९५. पत्र: जमनालाल बजाजको
शनिवार [१९ फरवरी, १९२७][२]
तुम्हारा पत्र मिला। लालाजीकी माँग स्वीकार करनेकी तुम्हारी इच्छाको रोकनेका मेरे पास कोई कारण नहीं था, इसीलिए तार नहीं दिया।
जानकीबहनकी खबर मुझे फिलहाल रोज पोस्टकार्डसे मिलती रहे, ऐसा चाहता हूँ। सतीशबाबूका लड़का अनिल गुजर गया है। वे गिरिडीहमें हैं। उनका पता है——होम विला, गिरिडीह। परन्तु खादी प्रतिष्ठानके पतेपर लिखना ज्यादा सुरक्षित होगा। तार आया है कि दोनोंको बहुत ही सदमा पहुँचा है। मैंने समवेदनाका एक लम्बा तार भेजा है।