पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४५०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४२२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आत्म-विश्वासी और अन्ततः आत्म-निर्भर बनाना चाहूँगा। मैं उनमें वर्ग-भावना भी उत्पन्न नहीं होने दूंगा ।

हृदयसे आपका,

श्री प्यारेलाल

नं० २, मेटकाफ हाउस रोड

दिल्ली
अंग्रेजी (एस० एन० १२६५८) की माइक्रोफिल्मसे ।

२९२. हमारा और उनका कलंक

उड़ीसाका दौरा बहुत दिनोंसे मुल्तवी चला आता था, और जब उसका अवसर आया भी तो मेरे सन्ताप और मेरी जिल्लतको बेहद बढ़ा देनेके लिए ही। नजदीकसे नजदीकके रेलवे स्टेशनसे ३१ मील दूर, बोलगढ़में, मैं ११ तारीखको दीनबन्धु एन्ड्रयूजके साथ बैठा बातें कर रहा था। उसी समय सिर्फ एक मैली-सी लंगोटी पहने कमर झुकाये एक आदमी झुकता हुआ मेरे सामने आया। उसने जमीनसे एक तिनका उठा कर मुंहमें डाल लिया, और मेरे आगे साष्टांग लोट गया; फिर उठकर उसने प्रणाम किया, तिनका निकालकर बालोंमें खोंस लिया और जाने लगा। यह दृश्य देखते हुए मैं पीड़ासे तड़प रहा था । यह खतम होते ही मैंने किसी दुभाषियेको चीखकर पुकारा और इस भाईको बुलाकर बातें करने लगा। वह बेचारा अछूत था । बोलगढ़से छः मीलपर रहता था । बोलगढ़में लकड़ी बेचने आया था। वहाँ आनेपर मेरे बारेमें सुनकर मुझे देखने चला आया था। मेरे पूछनेपर कि मुँहमें तिनका क्यों लिया था, उसने कहा, आपका आदर करनेके लिए।" शर्मसे मैंने सिर झुका लिया। इस 'आदर' की कीमत मुझे बहुत भारी, असह्य जान पड़ी । मेरी हिन्दू-भावनाको गहरी ठेस लगी थी। मैंने कहा, "मुझे कुछ दोगे ? वह बेचारा एक पैसेके लिए कमर टटोलने लगा। मैंने कहा, “मुझे तुम्हारे पैसे नहीं चाहिए, पर मैं उससे भी अच्छी चीज माँगता हूँ।" उसने कहा, दूंगा । उससे पूछ लिया था कि वह शराब पीता था, मुरदार मांस खाता था, क्योंकि यह तो उनका रिवाज था ।

“ मैं तुमसे यह माँगता हूँ कि तुम जबान दो कि दुनियामें किसी आदमीके लिए आगेसे मुँहमें तिनका नहीं दूंगा, यह आदमीके आत्म-सम्मानके लायक काम नहीं है; फिर कभी शराब नहीं पीऊँगा, क्योंकि वह आदमीको पशु बना देती है; मुरदार मांस नहीं खाऊँगा, क्योंकि यह हिन्दू धर्म के विरुद्ध है और कोई भी सभ्य आदमी कभी मुरदार मांस नहीं खायेगा।"

उस गरीबने जवाब दिया, "मगर शराब न पीऊँ और मुरदार मांस न खाऊँ तो बिरादरीवाले मुझे जातिसे निकाल देंगे।"