पहला यह है : प्रस्तावनामें अधिकारोंका उल्लेख करनेके बजाय कहना चाहिए “उभय पक्षोंके अधिकारोंको ठेस पहुँचाये बिना, आदि " ।[१]
दूसरा, जिसे मैं सबसे महत्त्वपूर्ण और सच्चा हल मानता हूँ, यह है कि मुसलमान लोग गो-वध न करें और हिन्दू लोग मस्जिदोंके सामने संगीत न छेड़ें । इन दोनोंको पारस्परिक सहमतिसे कानूनका हिस्सा होना चाहिए । मालवीयजीका खयाल है कि यदि मुसलमान लोग दूसरा प्रस्ताव स्वीकार कर लें तो वे हिन्दू महासभाको अपने साथ सहमत कर लेंगे ।
यदि आप समझें कि इन दो प्रस्तावोंमें कुछ तत्त्व है तो कृपया एकता प्रस्तावों- का पास करना मुल्तवी कर दें और हम सब लोग इन प्रस्तावोंपर उनके समस्त फलितार्थोंको ध्यान में रखकर चर्चा कर लें ।
हृदयसे आपका,
४३६
- अंग्रेजी (एस० एन० १२३९१) की फोटो-नकलसे ।
३०९. पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयूजको
२६ दिसम्बर, १९२७
मैंने तुम्हारे प्रस्तावोंमें फेर-बदल कर दी है। उड़ीसा-सम्बन्धी प्रस्ताव कांग्रेसमें नहीं आना चाहिए। क्योंकि ऐसे बहुत से स्थान हैं जिन्होंने संकट झेला है। उड़ीसाकी विशेष गरीबी पुरानी है। मैं देखूंगा कि ग्रेगकी किताबके प्रूफ पढ़नेके बारेमें क्या किया जा सकता है। मैंने कांग्रेस कमेटीकी किसी बैठकमें भाग नहीं लिया है। अच्छा आराम कर रहा हूँ। यहाँके डाक्टरोंने रक्तचापमें कोई विशेष वृद्धि नहीं देखी है। मैं कल या परसों यहाँसे चलूंगा । १३ जनवरी या उससे पहले आश्रममें तुम्हारे पहुँचनेकी आशा करता हूँ। टकर मेरे साथ है ।
मोहन
शान्तिनिकेतन
- अंग्रेजी (जी० एन० २६२७) की फोटो-नकलसे ।
- ↑ १. लगता है यह सुझाव स्वीकार कर लिया गया था; देखिए परिशिष्ट ९, हिन्दू-मुस्लिम एकता सम्बन्धी प्रस्तावका भाग ख-खण्ड १