१२५. पत्र: वल्लभभाई पटेलको
सत्याग्रहश्रम, साबरमती
३१ जुलाई, १९२८
आपका पत्र मिल गया। आज तो मैं जिसमें मुझसे वहाँ जानेको कहा जायेगा ऐसे तारकी आशा कर रहा था। मैंने अपनी सब तैयारी कर ली थी।
भाई नरीमन और हरिभाई यहाँ आ रहे हैं, इसलिए अभी ज्यादा नहीं लिखता। हमारा रास्ता तो सीधा है। न हमें पटवारियोंकी बात छोड़नी है और न जमीनकी जाँच-समितिकी जाँच पूरी होनी चाहिए। जाँचके क्षेत्रका सीमित किया जाना हमें स्वीकार्य नहीं हो सकता। अगर आपको ठीक लगे तो के और डेविस भले ही रहें। मुझे कब आना चाहिए, इसके बारेमें तार दें।
मणिबहन मिल गई। बहुत सूख गई है। उसे भेज दिया यह अच्छा किया। अभी तो शहरमें ही रहेगी। पाँच तारीखको आनेकी बात कर रही है। भाई नरीमन और हरिभाई मिल गये हैं। आपको विधान सभाके सदस्य बीचमें पड़कर सार्वजनिक रूपसे बुलायें, तो उनके आमन्त्रण पर जाना मुझे इष्ट प्रतीत होता है। शर्तें तो वही है, जो हमने बनाई हैं।[१]
बापू
[गुजराती से]
बापुना पत्रो–२: सरदार वल्लभभाईने
- ↑ देखिए "सरकारकी कुबुद्धि", २२-७-१९२८।