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[इसके बादका अंश गुजरातीमें हाथसे लिखा गया है।]
इस पत्रको पढ़ लेना । ऐसा ही सबको लिखा है। मालूम होता है, किचिनने इस मामलेको बड़ा रूप दे दिया है। मैंने उन्हें तार भी दिया है। तुम्हें बैठकमें उपस्थित रहना आवश्यक जान पड़े तो रहना।
लच्छीरामको अभी अखबार नहीं मिल रहा है। किस पतेपर भेजते हो, यह लिखना। मणिलालको पानी भरनेके लिए छोटी बहँगी बनवा देनी चाहिए। जान पड़ता है, उसे पानी उठानेमें कठिनाई मालूम होती है।
मोहनदासके आशीर्वाद
गबरू, बॉक्स ५७०९, कहते हैं कि उन्हें 'ओपिनियन' एक ही हफ्ते मिला। अब नहीं मिलता। समझमें नहीं आया कि मदरसा [- कोषके दानियों ] के नाम क्यों नहीं छापे गये? अब आगे ऐसा नहीं होना चाहिए।
गांधीजीके हस्ताक्षरयुक्त टाइप की हुई अंग्रेजी और स्वहस्त लिखित गुजराती दफ्तरी प्रति (एस० एन० ४३७७) से ।
१०६. पत्र: छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
अक्तूबर ५, १९०५
तुम्हारा पत्र मिला। मुझे दफ्तरके सरनामा-छपे कागज और उनके साथ जोड़े जानेवाले कोरे कागज भेज देना। उनमें "तारका पता--'गांधी' छपा देना। नाम पंजीकृत करवा लिया है। यह काम जल्दी पूरा कराना।
चि० आनन्दलालके लिए घरके सम्बन्धमें मेरा खयाल यह था कि वह चि० अभयचन्दका मकान लेना चाहता है। यदि उसे नया ही मकान बनवाना हो तो मेरी राय है कि फिल- हाल खर्च न किया जाये। मैं इसी तरहका पत्र उसे लिखता हूँ।
श्री बीनके लिए घरमें रंग करा देनेमें ही छुटकारा देखता हूँ।
हेमचन्दसे बराबर काम लेना। वह कैसा चल रहा है, मुझे लिखते रहना। मेरी रायके विना निकालने-रखने वगैराका फेरफार होना ही नहीं चाहिए। इस सम्बन्धमें कदम उठा चुका हूँ। ऑर्चर्ड और साम गुस्सा हुए हों तो उसकी चिन्ता नहीं।
मनसुखलाल फिलहाल तो हवापानी बदलनेके लिए ही आयेंगे। और यदि आये ही तो मैं उन्हें स्नान [चिकित्सा ] वगैराके लिए कुछ समय ही अपने पास रखुंगा और फिर वे कुछ समय वहाँ रहेंगे।
१. दाभेल, गुजरातमें एक मुस्लिम स्कूल, जिसके लिए दक्षिण आफ्रिका चन्दा एकत्र किया जा रहा था ।