१७२. केपका प्रवासी-अधिनियम
केपके प्रवासी अधिनियमके बारेमें हम दूसरे स्तम्भमें एक बहुत महत्त्वपूर्ण परीक्षात्मक मुकदमा उद्धृत कर रहे हैं। केपके ब्रिटिश भारतीयोंको, इस बारेमें बहुत सावधान रहना होगा कि यह अधिनियम कैसे लागू किया जाता है। नरोत्तम लालू नामका एक व्यक्ति, जो नौ वर्षोंसे नेटालमें रह रहा है, केपमें प्रवेश करनेसे इस आधारपर रोक दिया गया कि वह दक्षिण आफ्रिकाका अधिवासी नहीं है। यद्यपि उसके पास नेटालका प्रमाणपत्र था, उसका पूर्व अधिवासी होनेका दावा खारिज कर दिया गया। इसका कारण यह बताया गया कि उसके स्त्री-बच्चे उसके साथ नहीं थे, और न दक्षिण आफ्रिकामें ही थे। केपके प्रशासकोंने अपने अधिकारियोंको आदेश दिया है कि जबतक प्रार्थी यह न सिद्ध करें कि दक्षिण आफ्रिकामें उनकी अचल सम्पत्ति है अथवा उनके स्त्री-बच्चे दक्षिण आफ्रिकामें हैं, तबतक उनके दावे खारिज किये जायें। न्याय- मूर्ति श्री मासडॉर्पने एक अच्छा-खासा निर्णय दिया है। उन्होंने कहा है कि दक्षिण आफ्रिकामें स्त्री और बच्चोंकी उपस्थितिकी शर्त, यद्यपि यह अधिवासी होनेके पक्षमें एक बहुत बड़ा तथ्य है, पूर्णतया आवश्यक नहीं है। विद्वान न्यायाधीशने यह भी निर्धारित किया है कि नेटालका अधिवासी होनेका प्रमाणपत्र पूर्व अधिवासी होनेका सबूत नहीं है। क्योंकि वह किसी न्यायाधीश या न्याय-सम्बन्धी अधिकारीके तय करनेका प्रश्न है। इस निर्णयका विशुद्ध परिणाम यह होगा कि केवल वे भारतीय, जो दक्षिण आफ्रिकामें अपना दीर्घकालीन निवास और वहाँ आगे भी बने रहनेका अपना इरादा सिद्ध कर सकेंगे, उन्हींके अधिवासी होनेके दावे माने जायेंगे। यहाँ तक यह संतोषजनक है। परन्तु, जैसा कि खयाल किया गया था, और वह बहुत उचित भी था, उसके विपरीत वे नेटालके अधिवासी होनेका प्रमाण दिखानेपर बिना किसी परेशानीके केपमें प्रवेश करने में समर्थ नहीं होंगे। अब, केपका कानून दक्षिण आफ्रिकाके किसी भी भागके अधिवासको मान्यता देता है। और इस कानूनके सही अमलके हकमें यह बहुत जरूरी है कि नेटाल सरकार द्वारा प्रदत्त प्रलेख केपमें भी स्वीकार किये जायें, नहीं तो अनन्त उलझनें और परेशानियाँ उठ खड़ी होंगी। जैसा कि प्रार्थीके वकीलने कहा है, अधिवाससे सम्बन्ध रखने- वाला कानून नेटालमें लगभग वैसा ही है जैसा कि केपमें है। इसलिए कोई कारण नहीं है कि अधिवासके जो प्रमाणपत्र, जैसा कि सब लोग जानते हैं, बड़ी जाँच-पड़तालके बाद नेटालमें जारी किये जाते हैं, वे शुभाशा अंतरीपके उपनिवेशमें स्वीकार न किये जायें।
[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-१२-१९०५