२४९. व्यक्ति-कर
लेडीस्मिथका एक संवाददाता हमारे गुजराती स्तम्भों में लिखता है :
हम इस ओर सरकारका ध्यान आकर्षित करते हैं। यदि हमारे संवाददाता द्वारा दी गई सूचना ठीक है, तो यह व्यक्तिकरकी वसुलीसे सम्बन्धित अधिकारियोंके लिए अत्यन्त वदनामीकी बात है। इन गरीब लोगोंको न केवल कर चुकानेके लिए बाध्य करना, बल्कि जब वे कर देने आयें तब उनपर जुर्माना ठोंक देना, हमें अन्यायकी पराकाष्ठा मालूम होती है। हमारी रायमें दण्डात्मक धारा उनपर लागू नहीं होती जो अपनी इच्छासे कर दे देते हैं; बल्कि उनपर लागू होती है जो उसकी अदायगीसे बचना चाहते हैं। दैनिक पत्रोंमें इस आशयके समाचार छपे हैं। कि भारतीय अत्यन्त शीघ्रतासे कर चुका रहे हैं। जैसा कि हमारे संवाददाताने लिखा है, दूर-दराज जगहोंमें रहनेवाले लोगोंसे यह आशा करना निर्दयता है कि वे विज्ञापित समयसे पूर्व अदायगीकी जगहों में पहुँचकर कर चुका देंगे। हमें इस सम्बन्धमें सन्देह नहीं है कि बहुतोंको अपनी इस जिम्मेदारीका पता भी नहीं है, और जैसा कि हमारे संवाददाताने लिखा है, यदि यह सत्य है कि उन्हें सूचित किया जाना लाजिमी है तो सरकारसे अधिकारियोंको यह आदेश देनेकी उम्मीद करना उचित ही होगा कि जो लोग कर दें उनसे वे रकम ले लें और उनको व्यक्ति-कर कानून भंग करनेके कथित अपराधमें गिरफ्तार करके उनपर जुर्माने न करायें। हमें सरकारकी दया-भावनामें काफी विश्वास है और हम अनुभव करते हैं कि वह इस अन्यायको बन्द कर देगी, जो कानूनके नामपर किया जा रहा है।
इंडियन ओपिनियन, १७-३-१९०६