२८२. पत्र : छगनलाल गांधीको
जोहानिसबर्ग
अप्रैल ७, १९०६
श्री बीनकी मारफत मुझे पार्सल मिल गया है। मैं चाहता हूँ, तुम हेमचन्दसे काम लो और उसे कहो कि दफ्तरी बातोंके बारेमें वह मुझे लिखा करे। मुझे सब बातोंकी ठीक खबर मिलती रहना बहुत जरूरी है। तुमपर कितना बोझ है, इसका मुझे पूरा भान है; मगर जो सहयोग तुम्हें प्राप्त है, उसका लाभ उठाकर बोझ हल्का करना न करना तुम्हारे हाथमें है। बेशक गोकुलदाससे भी तुम कह सकते हो कि वह मुझे थोड़ा-सा लिख दिया करे। मेरी भेजी हुई सारी सामग्रीकी पहुँच मुझे मिलनी चाहिए, ताकि अगर कुछ गड़बड़ हो जाये और समय हो तो मैं और सामग्री भेज सकूँ। श्रीमती मैकडॉनल्डके बारेमें तुम्हारी सम्मति जाननेको बहुत ही उत्सुक हूँ। सो हेमचन्द या गोकुलदास या आनन्दलालके जरिये भी सूचित की जा सकती है। कितनी तफसीलें हैं, जिनपर मुझे ध्यान देना चाहिए; मगर तुम्हारी तरफसे जानकारी पाये बिना मैं वैसा नहीं कर सकता। मोतीलालने लिखा है कि बम्बईसे कोई नया आदमी आया है। नाम धोरीभाई है। उसका कहना है कि उसे छापाखानेका काम अच्छी तरह आता है। वह रहनेकी जगह और ४ पौंड माहवारपर काम करनेको तैयार है। अगर तुम्हें लगे कि काम बहुत है तो इस आदमीको देखना चाहिए। कुछ भी हो, तीन बातें निहायत जरूरी हैं :
(२) अखबार में सामग्रीकी कमी न रहे।
इन तीनमें से एककी भी उपेक्षासे सब उलट-पुलट हो जायेगा। तुम्हारे जरूरतसे ज्यादा काम करनेका एक परिणाम दफ्तरी लिखा-पढ़ीकी उपेक्षा है। जैसे, दरें तुम्हें एकदम भेजनी चाहिए थीं। तो मैं चाहता हूँ कि इसपर सावधानीसे सोचो और परिस्थिति ठीक करो। इसी विचारसे मैंने श्रीमती मैकडॉनल्डका नाम सुझाया है। वे बहुत उत्तम काम करनेवाली हैं। व्यवस्थित हैं और परिश्रममें तुम्हारा या श्री वेस्टका मुकाबिला करती हैं। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं कि वे हिसाब-किताब सँभाल सकेंगी। शायद मैं अगले हफ्ते वहाँ आऊँगा। ईस्टरकी छुट्टियाँ खत्म होनेके पहले मैं टिकट खरीद लेना चाहता हूँ; मगर आनेके पहले श्रीमती मैकडॉनल्डके बारेमें तय कर लेना चाहता हूँ, ताकि अगर जरूरत हो तो उन्हें साथ ला सकूं। आज कुछ गुजराती सामग्री भेज रहा हूँ। आशा करता हूँ कि सोमवार तक तुम्हें मिल जायेगी। अगर तुम और श्री वेस्ट दोनों, और दूसरे भी, किसी निर्णय तक पहुँचकर इस मामलेमें तार कर दो तो बहुत अच्छा हो। आनन्दलाल, मगनलाल और सैमसे भी पूछ लेना। अगर बदलेमें 'वीकली
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