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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 5.pdf/३७०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फिर भी मैं आपसे पूछता हूँ कि नगर परिषदने अपने उद्देश्यकी पूर्तिके लिए जो साधन ग्रहण किये हैं, क्या आप उनका समर्थन करते हैं?

आपका, आदि,
मो° क° गांधी

[अंग्रेजीसे]
ट्रान्सवाल लीडर, २५-५-१९०६
 

३५०. साम्राज्य-दिवस

पिछले गुरुवारको साम्राज्य भरमें, स्वर्गीया सम्राज्ञीका जन्मदिन मनाया गया । यद्यपि सालपर साल बीतते जाते हैं फिर भी उस श्रेष्ठ महिलाकी स्मृति सदाकी तरह ताजी बनी है। भारत और वहाँके लोगोंमें उनकी गहरी दिलचस्पी थी और बदले में उन्हें भारतकी कोटि-कोटि जनताका सम्पूर्ण हार्दिक स्नेह प्राप्त था। जब १८५८ के राजघोषणापत्रमें इस बातका अवाञ्छ- नीय उल्लेख किया गया कि सरकारको देशी धर्मो और प्रथाओंका प्रभाव कम करनेका अधि- कार है, तब उन्होंने सारा घोषणापत्र फिरसे लिखवाया। और इस कृत्यके द्वारा उन्होंने भारतके धर्मोमें अपनी दिलचस्पी और उनके प्रति सहिष्णुताको व्यक्त किया। अपने एक पत्रमें महारानीने लॉर्ड डर्बीको[] लिखा :

ऐसा आलेख उदारता, नम्रता और धार्मिक सहिष्णुता की भावनाओंसे भरा हुआ होना चाहिए और उसमें उन विशेष अधिकारोंका संकेत होना चाहिए जो भारतीयोंको ब्रिटिश सम्राट्की प्रजाके साथ समानताके आधारपर प्राप्त होंगे और उस सुख-समृद्धिका जिक भी होना चाहिए जो सभ्यताके पीछे-पीछे आयेगी।

ये सिद्धान्त थे जिनपर साम्राज्यकी नींव रखी गई थी। केवल व्यापार-विस्तार और भूमिपर प्रभुत्व प्राप्त करना सच्चे साम्राज्यवादियोंका लक्ष्य नहीं हुआ करता। उनके सामने एक महान और उच्च आदर्श होता है। जॉन रस्किनके शब्दोंमें वह आदर्श है। यथासम्भव अधिक से अधिक संख्यामें पूर्ण प्राणवान, तेजस्वी नयन तथा सुखी हृदयवाले मानव-प्राणियोंका प्रादुर्भाव करना।" हम इस आदर्शको अपने दक्षिण आफ्रिकाके जन-नायकोंके सामने रखेंगे और उनसे अनुरोध करेंगे कि वे जातीय विद्वेष और रंग-भेदकी भावनाओंको दूर कर दें। महान ब्रिटिश साम्राज्य न तो अत्याचारपूर्ण तरीकोंसे अपनी वर्तमान गौरवपूर्ण स्थितिमें पहुँचा है और न वफादार रिआयाके साथ अनुचित व्यवहारसे उस स्थितिको कायम रखना ही सम्भव है। ब्रिटिश भारतीय अपने सम्राट्के प्रति सदैव गहरी भक्ति रखते रहे हैं और उनको अपने प्रजावर्गमें सम्मिलित करके साम्राज्यने कुछ खोया नहीं है। ग्रेट ब्रिटेनके लिए भारत सम्पत्तिका एक विशाल भण्डार है, जब कि उसके हजारों निवासी बिना कुछ कहे भुखमरीके कारण मौतके मुँहमें समाते जा रहे हैं। हमारा सुझाव है कि यदि साम्राज्यके मामलोंमें महारानी विक्टोरिया की प्रबुद्ध भावनाका अधिक उपयोग किया जाये, तो हम इतनी महान सामाज्य निर्मात्रीके अधिक योग्य अनुयायी बन जायेंगे।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २६-५-१९०६
 
  1. एडवर्ड स्टेनली डर्बी (१७९९-१८६९), १८५२, १८५६ और १८६६ में इंग्लैंड के प्रधानमंत्री।