३८३. पत्र : गो° कृ° गोखलेको
स्टैंजर पड़ाव
जून २२, १९०६
मैं यह पत्र स्टैंजरके[१] सैनिक पड़ावसे लिख रहा हूँ। भारतीय डोलीवाहक दलको कल कूच करनेका हुक्म मिला है। इस बार इस दलके सामने जो काम है, वह ज्यादा मुश्किल तरीकेका है। कुछ भी हो, मेरे लिए यह पूरी तौरसे जरूरी था कि यदि यह दल बने ही तो मैं इसके साथ रहूँ। इसलिए मेरे इंग्लैंड आनेका प्रश्न स्थगित ही रखना होगा।
मैं आपके लम्बे पत्र और आपके दिये सुझावोंके लिए कृतज्ञ हूँ।
मेरा खयाल है कि श्री मॉर्लेसे आपकी मुलाकातोंका[२] परिणाम हमें समयपर ज्ञात हो ही जायेगा। अपनी यात्रामें यदि आप दक्षिण आफ्रिकासे गुजर सकें तो आपका यह शानदार काम और भी खिल उठेगा। मैं जानता हूँ कि यह स्वार्थीपनका विचार है। परन्तु यह देखते हुए कि आजकल मेरा सम्पूर्ण कार्य एकमात्र दक्षिण आफ्रिकासे सम्बन्धित है, आप मुझे ऐसे विचारके लिए क्षमा करेंगे।
आपका सच्चा,
मो° क° गांधी
हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकलसे।
सौजन्य : भारत सेवक समिति (सर्वेन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी)।
३८४. अनुमतिपत्रका एक महत्त्वपूर्ण मुकदमा
न्यायकी एक बार पुनः विजय हुई है और ट्रान्सवालके एशियाई अनुमतिपत्र विभागकी ज्याद-तियोंपर फोक्सरस्टके प्रधान मजिस्ट्रेटके हाथों कल्याणकर रोक लगी है। इस मुकदमेके बारेमें हमारे जोहानिसबर्गके संवाददाताने जो सारांश भेजा है, उससे मालूम होता है कि हीडेलबर्ग के एक प्रतिष्ठित भारतीय व्यापारी श्री ए° एम° भायातके भाई श्री ई° एम° भायातको ट्रान्सवालमें पुनः प्रवेशके लिए अनुमतिपत्र देनेसे इनकार किया गया, यद्यपि उन्होंने साबित कर दिया था कि वे बस्तीके एक पुराने निवासी हैं और ट्रान्सवालमें बसनेके लिए, मूल्यके रूपमें, डच सरकारको तीन पौंड अदा कर चुके हैं। श्री भायातके प्रार्थनापत्रको अत्यधिक प्रभावशाली यूरोपीय समर्थन प्राप्त हो चुका था। उन्हें