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६९. पत्र: ए० एच० वेस्टको

होटल सेसिल
[लन्दन]
नवम्बर २, १९०६

प्रिय श्री वेस्ट,

संलग्न पत्रसे[१] आपको, जो कुछ मुझे कहना है, वह सब मालूम हो जायेगा। अति व्यस्त होनेसे मैं अधिक नहीं लिख सकता। अपने पत्रके[२] उत्तरमें मुझे कुमारी पायवेलका एक पत्र मिला था। यदि सम्भव हुआ तो अब भी मैं लेस्टर जानेका प्रयत्न करूँगा।

आपका शुभचिन्तक,

संलग्न :

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४४५१) से।

७०. पत्र: डब्ल्यू० जे० मैकिटायरको

[होटल सेसिल
लन्दन]
नवम्बर २, १९०६

प्रिय श्री मैकिंटायर,

मुझे आपका सुन्दर, चटपटा और विनोदपूर्ण पत्र मिला। आपका श्लेष अच्छा है। यह अजीब बात है कि मेरी सहनशीलताके बारेमें आपको पहले इतना अन्दाज नहीं था जितना अब है। खैर, जब कुहरा छँट जायेगा तब हम एक-दूसरेको और अच्छी तरह जान सकेंगे। जबतक आपके पास यह पत्र पहुँचेगा, आपकी परीक्षा निकट आ जायेगी। श्री रिच पास हो गये हैं। और आपके आशाभरे पत्रसे भरोसा होता है कि आप भी पास हो जायेंगे। मैं कल श्रीमती फ्रीथका पता पानेकी उम्मीद करता हूँ।

आपका शुभचिन्तक,

श्री डब्ल्यू० जे० मैकिटायर
[३] बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४५२) से।

  1. यह उपलब्ध नहीं है ।
  2. देखिए "पत्र: कुमारी एडा पायवेलको", पृष्ठ ६१।
  3. एक स्कॉट थियॉसफिस्ट और गांधीजीके मुंशी।