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ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय


यह सजा बिलकुल वाहियात है। यहाँ दस-ग्यारह वर्षके एक बच्चेपर अपराधके सामान्य कानूनके अन्तर्गत अभियोग न लगाकर, उसपर अनुचित तरीकेसे अनुमतिपत्र प्राप्त करके ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेका जुर्म लगाया गया है। इतना तो दिखता है--और प्रलेखमें उसके प्रमाण भी मौजूद हैं--कि बालकके अंगूठेके निशान किसी दूसरेके अनुमतिपत्रपर लगे हुए हैं। किन्तु बालक तो कतई यह अपराध करने योग्य नहीं है। कठघरे में खड़ा किये जाने पर उसने कहा, मैं नहीं जानता कि अनुमतिपत्र क्या है, और मैंने कभी कोई अनुमतिपत्र नहीं देखा। यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि लड़केका कहना बिलकुल सच है। इसमें कोई शक नहीं कि ऐसा दण्ड एक क्षणके लिए भी मान्य नहीं किया जा सकता।

निःसन्देह प्रशासनिक आदेश अब भी जैसाका-तैसा है। मजिस्ट्रेटने गम्भीरतापूर्वक बालकको कैदकी अवधि पूरी हो जाने या दी हुई तारीखको, जो भी पहले आये उस दिन, ट्रान्सवाल छोड़ देनेका आदेश दिया है। यदि बालक उस दिन नहीं जाताऔर मैं नहीं समझता कि जबतक कोई उसे ले न जाये, वह कहीं जा सकता है उसे सम्भवतः फिर मजिस्ट्रेटके सामने अपराधीके रूपमें पेश किया जायेगा। किन्तु मुझे विश्वास है कि अधिकारी ऐसा मार्ग नहीं अपनायेंगे। मेरी समझ में नहीं आता कि यह मामला अदालतने लिया ही क्यों। यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात है। यह बालक भारतीय है, किन्तु यही ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेवाले (अध्यादेशमें जिन जातियोंको छूट दी गई है उन जातियोंके बालकोंको छोड़कर) किसी गोरे बालकपर भी लागू होगा और यदि यह ग्यारह वर्षके बालकपर लागू होता है तो गोदके बालकपर क्यों नहीं। निश्चिय ही इरादा यह नहीं था कि इस प्रकारको परिस्थिति में ऐसा प्राशासनिक आदेश दिया जाये। इस आदेशके अभावमें भी इस विधानको काफी आलोचना की जा सकती है। यदि कोई चीज है, जिससे ऐसे कानूनका प्रशासन हास्यास्पद और निन्दनीय हो जाता है तो, वह है, इस मामलेमें उसको लागू करनेका ढंग। मुझे विश्वास है कि हमें इस प्राशासनिक आदेशके बारे में और कुछ सुननेको नहीं मिलेगा।

कुछ ही दिन हुए, हमें उस बात का उदाहरण मिला था 'रैंड डेली मेल' ने "औरतों पर आक्रमण"[१] कहा है। उपर्युक्त मामले में हमें उसका उदाहरण मिलता है जिसे 'इंडियन ओपेनियन' "बालकों पर आक्रमण" कहता हैं। ऐसे मामलों में तत्काल सुधार करने की आवश्यकता है, न कि और भी सही से बरतने की। यदि लार्ड एलगिन ने ब्रिटिश भारतीयों द्वारा पेश किये गये आवेदनोंपर ध्यान नहीं दिया, तो यह मौकेपर मौजूद व्यक्तिपर भरोसा रखनेके सिद्धान्तका हास्यास्पद सीमा तक पालन करना होगा।

अध्यादेशके सम्बन्धमें लॉर्ड एलगिनसे पाँच ब्रिटिश भारतीयोंने व्यक्तिगत अपील[२] की है। उससे शिष्टमण्डलको जबरदस्त समर्थन मिला है। वे सब दक्षिण आफ्रिकाके विद्यार्थी हैं और वकालत अथवा चिकित्सा शास्त्रका अध्ययन कर रहे हैं। उनका जन्म या पालन-पोषण

  1. देखिए खण्ड ५, पाद टिप्पणी पृष्ठ ४६३।
  2. देखिए "प्रार्थनापत्र: लॉर्ड एलगिनको", पृष्ठ ८४-८५।