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१४१. पत्र: सर मंचरजी मे० भावनगरीको

होटल सेसिल
लन्दन
नवम्बर ९, १९०६

प्रिय सर मंचरजी,

ऐसा कहनेमें अतिशयोक्ति नहीं है कि यदि शिष्टमण्डलको किसी अंश तक सफलता मिली तो इसका श्रेय आपको होगा। जैसे ही मैं और श्री अली सर लेपेल ग्रिफिनके पास गये, उन्होंने हमें बताया कि उन्हें आपका पत्र मिला था और वे आपसे पूर्णतया सहमत हैं कि श्री मॉर्लेकी सेवामें शिष्टमण्डल जाना चाहिए।[१] उन्होंने अत्यधिक सहानुभूति और उत्साह प्रकट किया और निःसन्देह यह आपके कारण ही हुआ।

अब मैं श्री मॉलेको भेंटका समय निश्चित करने के लिए [पत्र][२] भेज रहा हूँ।

श्री अली और मैंने लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टनसे आधे घंटे तक बात की। उन्होंने सहानुभूति तो दिखाई परन्तु जो कुछ उन्होंने कहा उसमें लाचारीकी झलक थी। किन्तु उन्होंने हमसे कहा है कि वे अध्यादेशको ध्यानसे पढ़ेंगे।

आपका सच्चा,

सर मंचरजी भावनगरी, के० सी० एस० आई०
१९८, क्रॉमवेल रोड, एस० डब्ल्यू०

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४५२९) से।

१४२. पत्र : जॉन मॉर्लेके निजी सचिवको

होटल सेसिल
लन्दन
नवम्बर ९, १९०६

सेवामें
निजी सचिव
परममाननीय जॉन मॉर्ले
महामहिम सम्राट्के मुख्य भारत-मन्त्री
भारत कार्यालय
लन्दन
महोदय,

हम निम्न हस्ताक्षरकर्ता, जो ट्रान्सवाल विधान परिषद द्वारा पास किये गये एशियाई अधिनियम संशोधन अध्यादेशके सिलसिलेमें साम्राज्यीय अधिकारियोंसे मिलनेके लिए ट्रान्सवालके

  1. शिष्टमण्डलने २२ नवम्बर १९०६ को श्री मोर्लेसे भेंट की।
  2. देखिए अगला शीर्षक।