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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी पक्षके लोग[१] आ गये हैं। कहा जाता है कि लॉर्ड एलगिनके समक्ष ऐसा [समर्थ] शिष्टमण्डल पहले कभी नहीं गया। हम सब गुरुवारको[२] तीन बजे लॉर्ड एलगिनसे मिले।

सर लेपेल ग्रिफिनने बहुत ही जोश-भरा भाषण दिया और माँग की कि लॉर्ड एलगिन नये कानूनको रद करें। उन्होंने बतलाया कि यह कानून आंग्ल-भारतीयोंकी[३] बदनामी करानेवाला है । इस कानूनको पढ़नेवाले यही मानते हैं कि ऐसे लोगोंपर[४] राज करनेवालोंमें दम नहीं होगा। भारतीय और अंग्रेजी दोनों कौमें मध्य एशियामें पैदा हुई हैं। भारतीय प्रजा बहुत ही मेहनती, चतुर, और विश्वसनीय है। जिसने भारत देखा है वह कभी यह बर्दाश्त नहीं कर सकता कि यूरोपका कूड़ा ट्रान्सवालमें घुसकर भारतीयोंपर रोब गाँठे।

उनके बाद श्री गांधी और श्री अलीने भाषण दिये। भाषण देते-देते श्री अलीका गला भर आया था।

फिर सर हेनरी कॉटनने सख्त भाषण दिया। लॉर्ड लैन्सडाउनके शब्दोंकी याद दिलाते हुए उन्होंने कहा कि लोकसभा के सदस्य भी यह माँग करते हैं कि न्याय किया जाये। क्रूगर तो कोड़े ही मारता था, लेकिन ब्रिटिश सरकार बिच्छूके डंक मारती है।

सर मंचरजी बोले कि उन्हें श्री लिटिलटनने एक आयोग नियुक्त करनेका वचन दिया था; वह कहाँ गया? लॉर्ड एलगिनसे और कुछ न बन सके, तो आयोग तो नियुक्त करना ही चाहिए। श्री अमीर अली बोले वे अभी-अभी भारतसे आये हैं। दक्षिण आफ्रिकामें होनेवाले दुःखोंसे सारा भारत पीड़ित रहता है।

श्री दादाभाई बोले कि यदि भारतीयोंपर जुल्म होता रहेगा, तो इससे ब्रिटिश राज्यपर आँच आयेगी।

श्री रीज़ने कहा यह प्रश्न सबसे सम्बन्धित है।

श्री कॉक्स बोले, एक अंग्रेज होने के नाते उन्हें शर्म आती है कि ट्रान्सवालमें भारतीयोंको ऐसे दुःख उठाने पड़ते हैं।

लॉर्ड एलगिनने उत्तरमें कहा कि हमें भारतीयोंसे सहानुभूति होनी ही चाहिए। उन्होंने सदा ही भारतीय प्रजाका हित चाहा है। ट्रान्सवालके भारतीयोंने बताया है कि यह कानून जुल्मी नहीं है। देखा जाये तो श्री गांधीने ठीक ही कहा है कि ३ पौंडी शुल्ककी माफी कोई रियायत नहीं है। लेकिन कानूनमें जो ३ पौंडी कलंक लगा हुआ था, वह इसके द्वारा मिट जाता है, इतना फायदा तो कहा जा सकेगा। अँगूठे लगानेके सम्बन्धमें ज्यादा आपत्ति नहीं दिखाई देती। हमेशा पुलिस तंग करती रहे, जाँच करती रहे, यह ठीक नहीं। फिर भी इन सारी बातोंपर जोर देना आवश्यक नहीं है। सर लेपेल कहते हैं कि वहाँके ब्रिटिश गोरे ज्यादा विरुद्ध नहीं हैं। लेकिन क्रूगर्सडॉर्प वगैरह जगहोंसे तार आये हैं कि कानून पास होना ही चाहिए। श्री गांधी और श्री अलीके बारेमें यद्यपि मैं कुछ नहीं कहना चाहता फिर भी इतना कहता हूँ कि मेरे पास कुछ भारतीयोंकी ओर से भी विरुद्ध रायके तार आये हैं। यह सब

  1. लोकसभा भवनकी बैठकमें अनुदार दलके किसी प्रतिनिधिकी उपस्थिति नहीं थी, परन्तु सर हेनरी कॉटनके कथनानुसार ट्रान्सवाल भारतीय शिष्टमण्डलके प्रति अनुदार दलके प्रत्येक सदस्यकी व्यक्तिगत रूपसे "पूरी सहानुभूति" थी। देखिए पृष्ठ १२८।
  2. नवम्बर ८, १९०६।
  3. भारतमें रहनेवाले अंग्रेजोंका आंग्ल-भारतीय कहा जाता था।
  4. उन लोगोंकी ओर संकेत है जिनपर यह अध्यादेश लागू होता था, अर्थात् ब्रिटिश भारतीय ।