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सम्पूर्णं गांधी वाङमय

जायेगी कि भारतीय समाजमें अपने उस प्रसिद्ध प्रस्तावको[१], जिसे 'स्टार' ने "अनाक्रामक प्रतिरोध" का नाम दिया है, कार्यान्वित करनेकी कितनी क्षमता है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-३-१९०७
 

३९३. मलायी बस्ती

जैसा कि हमारे समाचार स्तम्भोंसे विदित होगा, जोहानिसबर्ग नगर परिषदको मलायी बस्तीका अधिकार बहुत जल्दी ही मिल जायेगा। इस मंजूरीकी एक शर्त यह होगी कि नगर-परिषद बस्तीके निवासियोंको उनके द्वारा बनाये गये मकानोंका मुआवजा देगी और उनके अधिकृत मकानोंके बदले में उनको दूसरे बाड़े भी देगी। पहली नजर में यह व्यवस्था न्यायपूर्ण जँचती है। किन्तु इसपर आगे विचार करनेपर इस तथ्यका पता चल जायेगा कि मुआवजे में भूमिके पट्टे या लगानकी हानिके सम्बन्ध में कोई भुगतान शामिल नहीं है। और परिषदके वर्तमान इरादोंका जहाँतक पता लगता है, बाड़े देनेका अर्थ है बस्तीके लोगोंको क्लिप्स्प्रूटमें स्थानान्तरित कर देना। यद्यपि मलायी बस्तीके बाड़ेदार असल में केवल मासिक किरायेदार थे, तथापि युद्ध शुरू होनेसे पहले तक बाड़ोंपर उनका अधिकार उतना ही सुरक्षित था, जितना कि फीडडॉप में डच नागरिकोंका, जिन्होंने बाड़ोंपर उन्हीं शर्तोंपर कब्जा किया था, जिनपर मलायी बस्तीके निवासियोंने। इसलिए जब हम डच नागरिकोंके साथ किये गये उत्तम व्यवहारकी तुलना उस व्यवहारसे करते हैं जो मलायी वस्तीके निवासियोंको इस सरकारी मंजूरीके मातहत सम्भवतः मिलेगा, तब हमें इस बातका पूरा अनुभव हो जाता है कि भूरी चमड़ी होने का अर्थ क्या है। यदि रंगदार लोग बोअर राज्यमें प्राप्त अपने किसी अधिकारको कानूनन सिद्ध नहीं कर सकते तो उनका उचित अधिकार, चाहे कितना ही मजबूत क्यों न हो, बदली हुई परिस्थितियोंमें खत्म ही कर दिया जाता है। क्या लॉर्ड सेल्बोर्न एक बार फिर यह कहेंगे कि गणतन्त्रीकी जगह ब्रिटिश झंडा आ जानेपर मलायी वस्तीके निवासियोंके अधिकारोंपर आंशिक रूपमें डाका डालना आवश्यक हो गया? क्योंकि बाड़ेदारोंको उनके मकानोंके बदले में दी जाने वाली मुआवजे की तुच्छ रकम उनके वर्षोंके उस अबाध अधिकारका, जिसके फलस्वरूप यहाँके अधिकांश बाड़ेदार अपने किरायेदारोंसे किराये के रूपमें अच्छी आमदनी कर लेते हैं और जो उनकी आजीविकाका साधन है, अपर्याप्त मुआवजा ही दे सकती है। अपने तर्कको और भी बल देनेके लिए हम सौवीं बार इस तथ्यकी दुहाई देते हैं कि राष्ट्रपति क्रूगरने इस बस्तीके निवासियोंको बस्ती से, जो जोहानिसबर्ग से १३ मील नहीं, ५ मील दूर है, हटानेका जो भी प्रयत्न किया, उसका उन लोगोंके पिछले हिमायतियोंने सफ- लतापूर्वक विरोध किया और ये हिमायती थे ट्रान्सवाल- स्थित खुद ब्रिटिश सम्राट्के प्रतिनिधि।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-३-१९०७
  1. चौथा प्रस्ताव, देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४३४।