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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अब्दुल रहमानका मुकदमा भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है। वह जान-पहचानवालों की गवाही देकर छूट जायेगा। फिर भी यदि श्री बर्जेसका वश होता तो वह भी रह जाता।

हम समझते हैं कि इस सम्बन्धमें यदि नेटाल भारतीय कांग्रेस कोशिश करे तो सुनवाई हो सकती है। यह बात डर्बनमें हो रही है, इसलिए उसके अधिकारकी है। वह श्री स्मिथ तथा नेटाल सरकारसे पूछ सकती है कि लोग किस अधिकारसे जहाजोंपर जाकर जाँच करते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-३-१९०७
 

३९८. इस्लामका इतिहास

'स्पेक्टेटर' विलायतमें प्रकाशित होनेवाले प्रसिद्ध समाचारपत्रोंमें से एक है। प्रिन्स टीआनो इटली के एक बड़े लेखक हैं। उन्होंने पूर्वीय भाषाओंका अध्ययन किया है। आजकल उन्होंने इस्लामी इतिहासपर पुस्तकें लिखना शुरू किया है। वे उसे बारह भागों में लिखना चाहते हैं। प्रथम भाग प्रकाशित हो चुका है। उसका मूल्य १ पौंड १२ शिलिंग है। उसमें ७४० बड़े आकारके पृष्ठ हैं। उसकी समालोचना २२ दिसम्बरके स्पेक्टेटर' में दी गई है। उसमें से हम निम्न सारांश दे रहे हैं :

प्रिन्स टीआनोने पहले भागमें पैगम्बरके पहले छः वर्षोंका इतिहास दिया है। उसमें हम पैगम्बरको राज्य-प्रबन्धक, विधायक, और सेनापतिके रूप में पाते हैं। उनकी शक्ति दिनोंदिन बढ़ती जाती है। यहूदियोंने उनका बहुत विरोध किया। किन्तु पैगम्बरने उनकी शक्तिको खत्म कर दिया। पैगम्बरका ठाठबाट चाहे ज्यादा न रहा हो, उनका जोर बहुत था। उन्होंने जो कुछ किया, वह दूसरे किसी धर्म-शिक्षकने नहीं किया। चालीस वर्षके बाद उन्होंने धर्मकी शिक्षा देना शुरू किया। उनकी लड़ाई स्वार्थकी नहीं, परोपकारकी थी। अपनी मृत्युके समय वे धर्म-राज्यके सर्वाधिकारी थे। उन्होंने दुनियावी ताकत भोगनेवाले धर्मकी स्थापना की। यह उनकी नैतिकता और महानताका परिणाम था। अरबोंको सामाजिक जीवनका भान नहीं था। उन्होंने उन्हें उसका भान कराया और उन्हें एक राष्ट्र बनाकर जबर्दस्त लड़ाकू कौमका रूप दिया। उस कोमने विविध राष्ट्रों-पर हुकूमत की, और मुसलमान लोग आज भी, यद्यपि भिन्न-भिन्न देशोंमें रहते हैं, एक ही ख़ुदा और उसके रसूलको मानते हैं और ऐसा माननेवाले दूसरे लोगोंके साथ भाईचारा रखते हैं। यह भाईचारा किस प्रकारका है और इस जमाने में मुसलमान कौम क्या कर सकती है, इसपर अखिल इस्लाम आन्दोलनकी छानबीन करते हुए हमें बार-बार विचारना पड़ता है।

ऊपर हमने सार-मात्र दिया है। उसका बहुत-सा हिस्सा, जिसमें विरोध है, हमने छोड़ दिया है। परन्तु अंग्रेजी जाननेवालोंसे हमारी सिफारिश है कि वे उस पूरे लेखको पढ़ें।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-३-१९०७