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पत्र : 'नेटाल ऐडवर्टाइज़र' को

सार्वजनिक सभाओं में एशियाइयोंके ट्रान्सवालमें जबरदस्त और गैरकानूनी प्रवेशके दोषारोपणके विरोधमें कही हैं। सौभाग्यसे मैं जिस उद्देश्यकी पूर्तिमें लगा हूँ, उसके लिए मैंने अबतक जो-कुछ कहा है उसका एक भी शब्द वापस लेनेकी मुझे जरूरत नहीं है और उसका सीधा-सादा कारण इतना ही है कि रायटरकी एजेंसी अनजाने ही एक बिलकुल गलत वक्तव्यको तार द्वारा भेजनेका निमित्त बनी है। इसके कारण जो नुकसान हुआ है उसे पूरी तरह पोंछ डालना अब कठिन होगा। रायटरके तारमें कहा गया था कि १२,५४३ पंजीयनोंमें से केवल ४,१४४ खरे माने गये। यह वास्तवमें विवरणके, जो इस समय मेरे सामने है, एक कथनका सार है। इस सारसे रचयिताके मंशाका बिलकुल उलटा अर्थ प्रकट होता है। कृपया मुझे वस्तुस्थितिको यथासम्भव संक्षेपमें पेश करनेकी इजाजत दीजिए। पंजीयन कराने और अनुमतिपत्र लेने, दोनोंको एक नहीं माना जाना चाहिए। १९०३ में ट्रान्सवालमें कमसे कम १२,५४३ एशियाई बाकायदा रहते थे। उस साल कभी लॉर्ड मिलनरने हिदायतें निकाली थीं कि १८८५ का कानून ३ लागू किया जाये और जिन एशियाइयोंने भूतपूर्व बोअर सरकारको तीन पौंड नहीं दिये थे उनसे वह रकम वसूल की जाये। और, उन्होंने पंजीयनकी एक जैसी पद्धति स्थापित करनेके लिए भारतीय समाजको नये प्रमाणपत्र लेनेकी सलाह दी थी। इनमें वे भारतीय, जिन्होंने तीन पौंडी प्रमाणपत्र पहले ले लिये थे और जिन्होंने नहीं लिये थे, दोनों ही शामिल थे।

लॉर्ड महोदयकी प्रसन्नताके विचारसे भारतीय समाजने स्वेच्छापूर्वक इस परिस्थितिको स्वीकार कर लिया। श्री चैमने अपने विवरणमें जो कुछ कहते हैं सो यह है कि उन १२, ५४३ व्यक्तियोंमें, जिन्होंने अपनेको पंजीयन के लिए प्रस्तुत किया था, ४, १४४ तीन पौंड अदा करने से छुटकारा पानेका अपना दावा सिद्ध कर सके थे। यह नहीं कहा गया है कि कितने दावे अस्वीकार किये गये थे। किन्तु यह मुद्दा बिलकुल स्पष्ट है कि जो अनुमतिपत्र जारी कर दिये गये थे उनकी वैधतापर पंजीयनका कोई असर नहीं पड़ा। वास्तवमें पंजीयन उन्हींका किया गया जिनके पास अनुमतिपत्र थे। इसलिए रायटरने जो वक्तव्य तारसे भेजा है उसका अर्थ यह है कि ४,१४४ व्यक्तियोंको छोड़कर सभी लोगोंको पंजीयन प्रमाणपत्र पानेके लिए तीन पौंडकी रकम अदा करनी पड़ी। इन प्रमाणपत्रोंसे पहले प्राप्त अनुमतिपत्र किसी तरह रद नहीं हुए। इसलिए आपका यह अनुमान कि उपनिवेशमें ८,००० व्यक्ति अवैध ढंगसे आये, बिलकुल गलत है। इस तथ्यसे कि १४४ एशियाई मरे और उनके अनुमतिपत्रों में से केवल चार प्राप्त किये जा सके, सिवाय इसके कुछ सिद्ध नहीं होता कि मृत व्यक्ति अपने मरनेका पूर्व अनुमान नहीं कर सके और अनुमतिपत्र लौटाना भूल गये। इन प्रपत्रोंको लौटाने का कोई कानून नहीं है और यह भी याद रखना चाहिए कि ये व्यक्ति ट्रान्सवालमें नहीं, भारतमें मरे थे। इसलिए चर्चित विवरण के अन्तर्गत अवैध प्रवेशसे सम्बन्धित केवल एक ही अनुच्छेद है, जहाँ ८७६ व्यक्तियोंके विषयमें बिना अनुमतिपत्र अथवा चुराये हुए अनुमतिपत्रों के साथ होने का आरोप है। श्री चैमनेने जो आँकड़े दिये हैं उन्हें ठीक भी मान लें तो इतना ही सिद्ध होता है कि जाली अनुमतिपत्रके साथ या बिना अनुमतिपत्रके लगभग ५० व्यक्ति हर महीने ट्रान्सवालमें घुसे। श्री चैमनेकी निन्दा करने के किसी भी उद्देश्यसे आपकी शिष्टताका लाभ उठाकर मैं चर्चाको यह कहने के लिए लम्बा नहीं बनाऊँगा कि उनमें न्यायिककी बुद्धिकी कमी है, सन्देह और प्रमाणमें वे अन्तर नहीं देख पाये हैं और उन्होंने ऐसे वक्तव्य दिये हैं