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उमर हाजी आमद झवेरीका त्यागपत्र


इस प्रकार रंग-रोगन चढ़ाकर बातें कही गई हैं, फिर भी यह सिद्ध नहीं होता कि भारतीय समाज बहुत-से लोगोंको अवैध रूपसे प्रविष्ट करता है या बहुतेरे लोग उस ढंगसे प्रविष्ट होते हैं। श्री चैमने द्वारा दी गई संख्या सही हो तो भी हर महीने अवैध रूपसे आनेवाले भारतीयोंकी संख्या ५० हुई। और इसको ट्रान्सवालपर चढ़ाईका रूप देना स्पष्ट ही बेढंगा है। फिर, भारतीय समाजने कहा है कि नये विधेयककी कुछ भी आवश्यकता नहीं है, यह भी श्री चैमनेकी रिपोर्ट सिद्ध कर देती है। उन्होंने कहा है कि वर्तमान कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि अँगूठा लगानेके लिए बाध्य किया जा सके। यह बात सही नहीं है। क्योंकि भारतीय समाजने अँगूठेकी निशानी देनेमें कभी आना-कानी नहीं की। और यदि कोई अँगूठा नहीं लगाता है तो उसे बिना अनुमतिपत्रके रहने का आरोप लगाकर न्यायालय में पेश किया जा सकता है। उस समय उस व्यक्तिको अँगूठेकी निशानी दिये बिना कोई चारा नहीं। इसलिए अँगूठेके निमित्त तो नये विधेयककी आवश्यकता नहीं रहती। लेकिन वे कहते हैं कि लड़कोंको रोकने के लिए वर्तमान कानून पर्याप्त नहीं है। यदि ऐसी बात है तो नये विधेयकके द्वारा अपने माता-पिताके साथ आनेवाले बालकोंपर पाबन्दी लगी हुई नहीं दीख पड़ती। अर्थात् वह उपाय भी नये कानूनके द्वारा नहीं मिल रहा है। इससे साबित होता है कि नया कानून बिलकुल निकम्मा है। और इस बातको 'रैंड डेली मेल' भी अब तो स्वीकार करता है। इस सबपर विचार करनेपर हम देख सकते हैं कि श्री चैमनेकी रिपोर्टको कुछ भी महत्त्व नहीं दिया जाना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-४-१९०७
 

४२४. उमर हाजी आमद झवेरीका त्यागपत्र

बहुत ही जरूरी कामके कारण श्री उमर हाजी आमद झवेरीने नेटाल भारतीय कांग्रेस के संयुक्त मन्त्रि-पद से त्यागपत्र दे दिया है। श्री उमर झवेरी नेटालमें ही नहीं, दक्षिण आफ्रिका में भी अपने जैसे अकेले और बेजोड़ हैं। उनकी बराबरी करनेवाला दूसरा कोई भारतीय नहीं है। इस तरह कहकर हम मानते हैं कि हम कोई अतिशयोक्ति नहीं कर रहे हैं। वे बहुत ही थोड़े समय में [भारत] चले जायेंगे। उनका अभिनन्दन करना अभिनन्दन लेनेके समान है। हमें विश्वास है, कि कांग्रेस तो अभिनन्दन करेगी ही, श्री उमर झवेरीसे समदृष्टिकी शिक्षा लेनेके लिए दूसरे मण्डल भी अलग-अलग अभिनन्दन करेंगे। अभिनन्दन अलग-अलग जगहोंपर और अलग-अलग दिन हो, यह जरूरी नहीं। एक ही स्थानपर कांग्रेस और दूसरे मण्डल अभिनन्दन कर सकते हैं और वही शोभा भी देगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-४-१९०७