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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

...माननीय सदस्य देखेंगे...वह सिफारिश इस विधेयकमें शामिल करली गई है...मद्य-सम्बन्धी धारा...जो एशियाइयोंको मद्य-अधिनियमसे छूट दिलाती थी [ उनके कहने पर ] विधेयकसे हटाली गई है। किसी जायदादको एक भारतीयके उतराधिकारियोंके नामपर कर देनेके लिए उपबन्ध रखा गया है...जबर्दस्त आग्रह किया गया है...कि हमें शिक्षित एशियाइयोंके लिए द्वार खोल देने चाहिए।... मुझे ऐसा महसूस नहीं हुआ है कि...कोई परिवर्तन होना चाहिए।... .आखिर इन बातोंके लिए हमपर जोर दिया गया है और इस विधेयकमें हमने उनकी काफी हदतक पूर्ति कर दी है। इसलिए किसी-न-किसी समझौतेपर पहुँचने या देशमें जो तूफान छाया था उसके उपशमनके लिए पूरा आधार मौजूद था। किन्तु मेरे सचिवको आज एशियाई समितिके नेताओंका एक पत्र मिला है जिससे मालूम पड़ता है कि वह आशा, जो पूरी तरह तर्कसंगत थी, हो सकता है, निराशामें बदल जाये। अन्य उपबन्ध हैं: सभी बन्दी मुक्त किये जायें, एशियाई अधिनियम रद किया जाये...साथ ही जलाये गये प्रमाणपत्र भी निःशुल्क दिये जायें (हँसी)।...श्री गांधीने उन भारतीयोंका उल्लेख किया जो इस देशकी गोरी आबादीके साथ साझीदार हैं...यह ऐसा दावा है जिसे यह गोरी आबादी कभी भी स्वीकार नहीं करेगी। (लगातार हर्ष-ध्वनि)।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-८-१९०८

परिशिष्ट ११

आम सभामें स्वीकृत प्रस्ताव

[अगस्त २३, १९०८]

प्रस्ताव १

नेटाल भारतीय कांग्रेसके अध्यक्ष श्री दाउद मुहम्मदने प्रस्ताव किया कि:

ब्रिटिश भारतीयोंकी यह आम सभा सादर प्रार्थना करती है कि सरकार कृपापूर्वक सम्राटकी कारुण्य-शक्तिका प्रयोग करे और श्री सोराबजी शापुरजीको, जिन्हें प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत बिना रोक-टोक सीमा पार करने दी गई थी और जिनपर एशियाई कानून संशोधन अधिनियमके अधीन कार्रवाई की गई थी, वापस लौटनेकी अनुमति दे। इस सभाको विश्वास है कि सरकार और ब्रिटिश भारतीयोंके बीच अर्सेसे जो विवाद चला आ रहा है वह सद्भावनापूर्वक तय किया जायेगा और सरकार कृपापूर्वक भारतीयोंको साम्राज्यके एक अंगकी हैसियतमें मान्यता देगी तथा इस समाजको शान्ति और आराम प्रदान करेगी जिसकी हकदार, इस सभाकी विनम्र सम्मतिमें, वह है।

श्री पारसी रुस्तमजीने इसका समर्थन किया और प्रस्ताव पास हो गया।

प्रस्ताव २

श्री जी० डब्ल्यू० गॉडफेने प्रस्ताव किया कि: ब्रिटिश भारतीयोंकी यह आम सभा नम्रतापूर्वक प्रार्थना करती है कि बड़ी सरकार एशियाई स्वेच्छया पंजीयन वैधीकरण विधेयकको तबतक अपनी अनुमति न दे जबतक उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंको [अपेक्षित] हैसियत नहीं प्राप्त होती और १९०७ का एशियाई कानून संशोधन अधिनियम मंसूख नहीं हो जाता।

श्री एन० ए० कामाने समर्थन किया और प्रस्ताव पास हो गया।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २९-८-१९०८