पृष्ठ:सरदार पूर्णसिंह अध्यापक के निबन्ध.djvu/१७

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निबन्धकार एवं कवि पूर्णसिंह पेड़ों और पक्षियों की सङ्गति में गुजरता है; आकाश के बादलों को देखते मेरा दिल निकल जाता है।' [पृष्ट ७१ ] फिर 'मज- दूरी और प्रेम' में भी यही बात दुहराते हैं-"प्रातःकाल उठकर यह अपने हल बैलों को नमस्कार करता है और हल जोतने चल देता है । दोपहर की धूप इसे भातो है। इसके बच्चे मिट्टी ही में खेल-खेल कर बड़े हो जाते हैं। इसके और इसके परिवार को बैल और गाँवों से प्रेम है। उनकी यह सेवा करता है । पानी बरसानेवाले के दर्शनार्थ इसकी आँखें नीले आकाश की ओर उठती हैं।" पूर्णसिह सम्पूर्ण मानव-समाज के प्राणी थे । ये गुण का श्रादर करते थे । इसीलिए इन्होंने अपने निवन्धों में बिना किमी भेद-भाव के भगवान शंकराचार्य, महाप्रभु चैतन्य, कपिल, गार्गी, शुकदेव, बुद्ध आदि के साथ मुहम्मद साहब, ईसा, मंसूर, शम्स तबरेज आदि का अपार श्रद्धा के साथ उल्लेख किया है। इनके कमरे में तो ईसा मसीह का चित्र सदैव लगा रहता था । कुल मिलाकर पूर्णसिंह सर्वमानववादी, धर्मद्रष्टा, रहस्यवादी कवि, अपनी बाणो से श्रोतामात्र को मुग्ध कर लेनेवाले अद्भुत वक्ता, प्रेम में डूबे हुए भावुक और सच्चे देश-भक्त के सम्मिलित व्यक्तित्व थे । उनके घर में किसी के लिए कोई भेदभाव नहीं था । प्रेम की मस्ती सदा उनके चेहरे पर छाई रहती थी। लोग मुग्ध हुए से इनके चारो ओर एकत्र हुअा करते थे। इनका घर सभी का निवास स्थान था । हिन्दू-मुसलमान का कोई भेद न था । डा० खुदादाद खाँ--एक मुसलमान पूर्णसिंह के बड़े मित्र थे, जो इनके घर में परिवार के एक सदस्य को भाँति रहते थे। देहरादून में वे इनको अन्तिम साँस तक साथ रहे। सतरह