पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महर्षि च्यवनजी फिर युवा कैसे हुए ? इस मात का यदि पता लगाना तानो च्यवनप्राशावलेह का मेघन कर देगिसम यामन, दमा. ज्यर. पामी, क्षय, पातरक, शोथ, दिमागकी फमारी, पालॉग्य प्रममय पाना प्रादि विकार मष्ट हो शरीर । हए-पुष्ट दाता है। नरी साफत उत्पन्न हा उत्साह पुरुग पार फांनि फी नृद्धि दाताहै। यह पालफ गृर गुया सबके लिये परम हिनकारी। पश्यिनीकुमारने है सी च्यवनप्राशावलेह से मदर्षि प्ययन को फिर मे पृर से युया । किया था । मृन्य ) गपये सेर एक हिका) म० चन्द्रप्रभा गुटिका इसमे पाच, मन्दाग्नि, काम, श्याम. पद्मश्र, पातरोग, फरिशूल, ई र मधुमेह प्रादि पार नेप्ररोग मए होते हैं। दाम ३, रुपये तोला। नारायण तेल । इससे मधियों पार गांठों का दर्द, गठिया, पातरोग, पक्षाघात पार लकया प्रादि समम्त पायु-यिकार नए दाते हैं। मूल्य ॥) पाय । गगियों के फार्म (पार पड़ा सूचीपम मुक मैगा देगिये । मिलने का पता जगन्नाधप्रमाद शुक्ल वेद्य, मादी al, मारल में मन्दाग्मि। १ दिदी क्या मारतीप सिमी भी भाषा में सो गुना मही पनी । इसमें मम्माप्ति होने पारण. मिशाग उसपर धार । मिरिमा का पिशनापूर्ण विस्तार महिग बन रिया गा पहिली मारिय सम्मे नन पार पंच-सम्मेपन की पपा 1 में मियत ।। पृष्ठ 1. स. पशिभाम• mr marn.- -.wirroranwrt ममम एक प्रति का भण्डार गता। पाकि भामम्द-प्राप्ति के साहित्य का में प्रायुप्य, भारोम्प पार अप्रितीप मासिक पाइस 5 पर हिन्दी में पंधक का सुधानिधि । manaana (स) पारागंज प्रयाग। विज्ञापन मसम, सासी, उपदेश चालीस महारमा के देश देशान्तर से दुर्लम लिपियों की मकल फरा कर अलग अलग सीधम चरित्र पार टिप्पनी सहित छापे गये है-कपीर साहिब, तुलसी साहिब (हायरसयाले) दादू दयाल, पलटू साहिप, अगमीपन साहिए, घरनदासमी, गरीबदासजी, पैदासजी, दरिया साहिप, मीरा बाई, सहमा पाई, इस्यादि । ___पक संग्रह साखियों का पार दूसरा शप्पो का छापा गया है। जिस में ऊपर लिने हुए महा- स्मानों के थोडे थोडे मजन पार सात्रियों के सिपाय सूरदासजी, गुसाई तुलसीदासनी, काष्ठजिला स्वामी प्रादि पाठ महामानों की पुनी मानी संक्षिप्त बीयम-चरित्र सहित रूपी है। ____जारसिक सम चाहें पूरी फ़िहरिस्त पेसपेभियर प्रेस इलाहाबाद के मैनेजर को लिख कर है मैंगया ॥