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पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१५०

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  • * * इंडियन प्रेस, प्रयाग की सर्वोत्तम पुस्तके ***

.......-~-१०:०४, २५ अक्टूबर २०१९ (UTC)- - - - - ------- घानविष्णुपुराण । पाजनिबन्धमाला। १७-पिपरा में रितमी एसी विचित्र २० - इसमें काई ३५ शिभादायक विपर्या पर, रशिक्षामद कगायेजन मानने की हिन्दी वही मुरार मापा में, निवन्ध लिगे गये हैं। पालकी लोको परोक्षारत। इस पुराण में कलियगी के लिए तो या पुस्तक उत्सम गुरु का काम मेगी। विष्य रासायी की घंशापटी मा परे विस्तार से जार मगाइए । मुल्प ) म किया गया है। लोग संम्पस भाषा में वालस्मृतिमाला। पुराण की पापो का भामन्द मी स्वर समत. सामनेपदस्थतियों का सार-संप्रद करा कर द'वालयिपा-पुराण' परमा नाहिपस पुस्तक यह "पालस्मृतिमाला' प्रकाशित की है। प्राशा है. पिपापुराण का सार समझिए । मूल्य ।। सनातमधर्म के प्रमी अपने अपने पालकी हाय में बाल-स्वारथ्य-रक्षा। पर धर्मशारख की पुस्तक देकर उनको पमिष्ठ बनामे का उद्योग करेंगे। मटा कंपल ।। पाठ पाने । १८-यह पुस्तक प्रत्येक दिमी जामनेपाले बालपराण। पढनी चाहिए । प्रकगृहम्य कोरसकी एक एक तापी अपने घर में रखमी माटिए । पालकी की तो २२-पुराणों में परत सी ऐसी कथायें है जिनसं रम्म से ही इस पुस्तकको परकर स्यास्ण-सुधार मनुष्यों को बहुत कुछ उपदेश मिल सकता है। पर । उपायों का नाम प्राप्त कर मेमा पादिए। इसमें पुराण इतने अधिक पार बड़े हैं कि उम सबका फरमा तलाया गया कि मनुष्य किस प्रकार रद कर, किस प्रत्येक मनुष्य के लिए प्रसम्मय नहीं तो महाका- कार का मायन करकमीगंगरख सकता है। इसमें साध्य अषय है। इसलिए सर्वसाधारण के सुभीते ति दिन के बाप में प्रानेयाली खाने की चीजों के गुप के लिए हमने पठारद महापुराय का सारस्पबाट- उप मी असो नरद पनाये गये है। वहाँ मक कदे, पुराण' यार करा कर प्रकाशित किया है। इसमें एमक मनुप्य-मात्र के काम की है। इतनी उपयोगी पठारही पुराग की संक्षिप्त कथामुखी दी गई है पार पुस्तक का मुण्य केपल पाटपामा रक्या है। यह भी बतलाया गया है कि किस पुराण में कितने यालगीतावलि । लोक पार कितने अभ्याय मादि है । पुस्तक बड़े काम की है। इतमी उपयोगी पुस्तक कामूल्य केवल १९-महाभारत में क्या महत है। उसमें सभी कुछ यालमोजप्रबन्ध । जूद है। मंदामारत व रमो का सागर फहमा गदिप, शिक्षा का मगर कहमा चाहिए। माप २१-राजा मोज का विधाप्रेम किसी से छिपा समते "बाळगीतापति" में क्या समें महा. नदी है । संस्कत भाषा के “मासप्रबन्ध" मामक प्रन्य . सरत में से गीतापो का संभाकिया गया है। में राजा मेज के संसन्त-विधाप्रम-समाधी प्रमेक म तापों में ऐसी उत्तम उद्यम शिक्षा कि प्राध्यान लिखे हुए हैं। बड़े मनोरजक और इनके अनुसार पाय करने से मनुष्य का परम शिक्षादायक है। रसी मानप्रबन्ध का मारकर यह न्याय हो सकता में पूरी प्राशाकिसमत पास-पासप्रवा" उपकर तैयार हो गया । समी देन्दी-मेमी इस पुस्तक को पढ़कर रसम शिक्षा हिन्दी-प्रेमियों को यह पुस्तक प्रवक्ष्य पढ़नी चाहिए । कम्पम करेंगे। मध्यपाठ माने। मूम्प बात ही कम फेवक । पाठ भामे। पुस्तक मिलने का पता-मैनेजर, इंडियन प्रेस. म्याग ।