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मा माग १७, स्थण १ फरवरी १८१६-माप १४२ सूरदास। (भैरवी) सूर को मग्मा मन करे? मेमोकको बो पाखोकित प्रम्पा वही हे 190 या प्रमुने प्रपच विसापा दीप तो तममा नहीं, पोर तम में दिसाया दीपक विम्य अन्प ॥२॥ दिने बाहिरी चकाचौंध से सपो मेड विगा, अन्तरि मितुदी तुमो-ममी दा मार ॥ मित्रमरितो रस प्रपाद की पाई तुमने पार, मेन सहित दम पर मरते नहीं समती पहा॥ , गदीम ने बारम्हारी इन मावन मेक, संख्या २, पूर्म संख्या १२४ rrrrrrrror उगमय दी थी सप दुमिपा-ये तुम रोनो एक ॥ जिस पारप मे प्रबस से पीप पिया दुसर, और सीप किया पप में, तुम सचमुच सूर | म की देसासुमा गया था परस्पाम का साप , लेकिन तुमने कर दिखाया ना मी बाधाप महाशर-बनिनस-मय निस्सी पक्-पेश से तान, पही हमारे लिए बन गई मधुर प्रवीकिक गान जिस समति-तप कोसने फंसाया सप पर , से मूब करताप हम माम पीर धार । बदरीनापं मारा. . .