पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१६२

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ल्या २] जननो । यो से मायु नामक जन्तु देखा था, जिसका लेख उन्होंने यजुर्षेद में किया है। सगरमोहन घा वो भी मां, तू मुझे हदप से ही लगाये , वैसा ही पासपप-भाप तू रही पनाये । न सित माती थी पित में मुमो मुदित निहार के। न मुझे पिसाती पी सदा मुम पर साइप पार। जननी। खननी, रे सम्मापिनी अपनी, मेरी, दो माता मन सि पार माते ही तेरी। सममा तू मे सहा मुझे मारनों का पारा, मुझे सममती रही सदा प्रायों से प्यारा । भूमे भमेक दु सरे मपूर्वक मेरे लिए। तू मे मेरे कस्पाय-दित क्या क्या पन महीं किये। काटा मैने मोठे दांतो से तुमको, मिया धार मी अधिक प्यार तप तूने मुमको पास दिया मज गीतमास में तेरे पर ,. तप भी तू गे प्रेम किया मां, मेरे अपर। सब इन बातों की पारी मुमग मा माती कमी, सच कहता हमें जननि, में मर मस्ती समी।। कोई पीपा रा पी मी या मुमसे , देखा गया पिरोप म्पपित पाल तब तुमको। रात राव मरतुकेगों में नरम भाई, जिस प्रकार सा ग्सी बिप म्पपा पटाई। मेरे मुह में मुख पा तुम दुल में एम्स रहा सदा । मुमसे सर्वत्र प्रमिप्र था। तेरा तन मन सर्परा पोला बन कर मुझे पीठ पर पंडाती थी। माझा अनुमार घूम कर सुत पाती थी। कमी सिमा कर मुझे मुदित कर देती थी , कमी रचित पदेश गएप में माती थी। पाभ प्रा" पढ़ामा चाहता पर मैं गुरु बन कर तुझे, हर पन कर प्रति निर्धोप हर्पित करती थी मुझे प्रवरानि के समय समी या सो जाते थे, पाप्रपनी-माकाश तिमिरमय हो जाते थे। तूं पंजे से ममम मुझे तर भी करती भी। . पपकी रेकर शान्ति सभी मेरी हरती पी। प्रमुवर पुण्य प्रसार मा मुम पर ना स्नेह था। पान में रसको मनमि, हती मिस्सन्देह पा भोमन करता हुमा मचल मत्र में माता पा , . साम एक भी मास पौर मुमको भाता था। मोसनमी, विविध प्रोमन देवर परती थी अनुप मुझे गोदी में देकर ।' मति ही प्रमुम्प पी मोक में ___ .वेरी पातें समी। इस समय बाप इस बात का शान तुमा म मुझे कभी . 'एनसी-जमा किदो गपे मेरे मन में ,

. ( मुझे रेलमपणा हा मारो के मन में।

मामैं मय मैं कभी किसी कारयम पान,,.. ., ममता पा रुदन एक कोने में बार।. ।