पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१८२

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ख्या २] मियदेश का प्रल-मजहर मामक विश्ययिपालय । देने पड़ते है-पुस्तकालय है। उसमें अधिकतर विद्यालय इसकी समता नहीं कर सकते । १९९२ पी की बड़ी फही पुस्तकें है। सदीप के पुस्तका- में यहाँ १४,९६० विद्यार्थी पार ५८७ अध्यापक थे । प में रससे भी अधिक परपी-पुस्तकों का संग्रह अंगरेजों के पाने पर इसकी पात उन्नति हुई है । । पढ़ने के लिए भी कमराई पद छोटा है। पढ़ने इसके पहले विपार्थियों की संपन्या प्राधी भी नहीं ले भी ६,७ से अधिक नहीं होते। इसका कारण थी | मपन्ध तो नाम के लिए था। जो 'घकफ । यहां के मुसलमान अपने धर्म की पुस्तकों को वित्ययिद्यालय के लिए किये गये हैं उनकी प्राम- फर दूसरे विषय के अन्य पदुत कम पढ़ते हैं। दनी से दूसरे ही लोग फायदा उठाते थे। गुद म की पुस्स तो याद ही फरमी पाती है। इस प्रयास, द्वितीय, मो पहले स्थवीय थे, ऐसा किया करते उए उन लोगों को पुस्तकालय की जरूरत नहीं थे । लपको ने प्रपन्य से असन्तुए होकर कई बार हती जरूरत म रहने से रचि मी नहीं रहती। उस्पात (Strika) किया था । पर प्राज फळ इसका दाला में सड़के पढ़ते रहते हैं। यिनाम का सम्ध अंगरेजों के हाथ में होने के कारण अबस रमय मिटने पर थे वहीं पाते-पीते पार पायम है। सप काम, जैसा होना चाहिए, होता है । रते हैं। दाहिनी घोर को कमरे हैं। उनमें कुछ यहां लड़कों की शिक्षा मुपट दी जाती है । उनसे छात्रों के अभ्यास के लिए हमार कुछ उन फीस महीं ली जाती ।इतना ही नहीं, उन्हें माखन सड़को के लिए जो दूसरी जगह से यहां पढ़ने पाते भी पियविद्यालय की पर से मिलता है । सर्च है । भागे बहने पर विप्यायचालय की पृहस् के लिए भी प्रत्येक को कुछ न कुछ अवश्य दिया पाल्पामचासा मिलती है। यहां प्रध्यापक पीर जाता है। प्रध्यापको का घेतन भी साधारणतः पात्र विपाभ्यास में लगे रहते है। लड़की में खासा है। चपलता नहीं । पियाद करना प्रथया मदन यहां की पाठायघि १७ साल की है । इवनी फरना-जैसे दूसरी जगह के विद्यार्थी किया करते और किसी वियविद्यालय में महीं है । यिद्या- है-इन लोगों में महाँ पाया जाता । प्रध्यापक चियो की योग्यता जांचने के लिए परीक्षायें ही कमी स्वयं पढ़ता है, कभी पहलाको को पढ़ाता जाती हैं। उत्तीर्ण होने पर ऊँचे दरजी में घे भेजे जाते है, फिर उसे समझाता है। है। परीक्षा में फिसने कितना कण्ठान कर लिया है बियार्थियों की संख्या अधिक होने के कारण इसका खयाल रखमा खाता है। इसमें दो विमाग तीन पार मसजि शिसा के काम में लाई जाती हैं। है। मीचे षिमाग का पाठमम प्राया उतना ही ये ये है-मुपायद, मरदानी, अतरक । मुमायद है जितना घर कालेमों में होता है । सादिस्य, 'पीर मरदानी मल-मजहर से पथरी मनीई है। अटकार-शाम पर धर्मशास्त्र, पे तो हर एक को ' भीतर की सजावट भी अच्छी है। ये सब छोटी पड़ने पड़ते हैं । गणित और इतिहास पढ़ना रण पिटरी कक्षा के लिए है। कुछ में तो बिलकुछ पर है। जो षिचार्यों पढ़ना चाहे वह इन विषयों प्रारम्भिक शिक्षा दी जाती है। जिस समय मैं गया को ले सकता है । शिान महीं है। विभाग में । उस समय एक हास में भूमोल पढ़ाया जा रहा था। 'शटर' की उपाधि मिलती है । इसमें केवल दो । प्रास्ट्रेलिया का मशा टंगा हुपा था। उस समय विपय है-मीमांसा-शाल और पर्मशाला धर्मशान 'प्रास्ट्रेलियन सिपाही मिभ में मेरा राखे हुए थे। में केवल कुरान और उसकी प्याल्या है। पस, इसना विद्यार्थियों की संध्या में अमेरिका के विश्व ही है।