पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/१८४

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स्या २] म्यायशास का महरय। FE "सर्व-साधारण का दित पार एक पादमी फा "इन्द्रियार्थसनिकर्षजन्य सामं प्रत्यक्षम्"। पर दोनो, एक दूसरे के विपद नहीं, दोनों एक प्रस्यक्ष-पान इन्द्रियों के सग्निकर्ष छारामाप्त होता मरे के परिपोषक है। यह सुम्हें स्वीकार हम" है। प्रत्येक इन्द्रिय का यिपय अलग अलग है। समर-"तुम्हारी बास मेरी समझ में नहीं विषय के साथ इन्द्रिय के संयोग देोमे से प्रत्यक्ष वाम होता है-जैसे, मांस के साथ स्वरूप का पार काम का प्रम-"मान लो, कोई डाकर अपने प्राइक के साथ आप का संयोगाने से। जमाने के लिए रोगियों की चिकित्सा पदुप्त भी अनुमान के लिए कारण की प्रायश्यकता होती. रह करता है । यह उन्हें शीघ्र पाराम करने वाली है। कारण ठीक होने से अनुमाम सचा उतरता है। वायें देता है। इस कारण उसके हाथ से अनेक कार्य के साथ कारमा का प्राय सम्पग्ध है। यह नागी अच्छे हुए। इस दशा में उसके द्वारा मर्य- सम्पन्ध “थ्याप्ति" कहाता है। जैसे, "यत्र यत्र साधारण को लाभ पहुंचा या नहीं।" धूमस्सन तमाग्निः" अर्थात् जहाँ धूम दिखाई देता

  • उमर-"पहुँचा"

हे पहा अग्नि अवश्य होती है । भ्याप्ति द्वारा पर्यत पर प्रश्न-"इसी प्रकार अधिक माम पाने की घुमा निकलते देख हम यह अनुमान करते है कि यहां तामना मे म्युनिमिपलटी का एक दारोगा शहर की प्रति है, पर हमारा यह अनुमान सथा निकलता सफाई पर ख़्य ध्यान देना है। उसके इस काम है। इस प्रकार के शान का माम अनुमान-मान है। से भी सर्वसाधारण का हित हुमा या नहीं?" किसी पस्तु के सहश किसी अन्य वस्तु का । उत्तर-"हुमा।" साम कराने पाला पाक्य उपमाम कहाता है। मान र इस प्रकार ऊपर के तर्कयाद को प्रमिपक्षी के लीजिप.कि हमने पाहा कमी नहीं देखा । एक दिन रस्थीकार कर देने पर पहले ग्यक्तिकापम सियागया। एक पादमी ने हमें बताया कि घोड़े का प्राकार प्रीस के प्रसिद्ध तस्यषेत्तापरिस्टाटस मेसी प्रकार सधर के सहश होता है। इस सादृश्य के बल अपने कथन को सिद्ध करने के लिए म्यायशाल- पर घोड़े को देखते ही हमने उसे पहचान लिया। सम्बन्धी प्रपमा अन्य माया था। उस प्राय की इस प्रकार का मान हमें उपमान-धारा दुमा । प्रत- वर्क-प्रसाली का एक उदाहरम लीजिए- पय यह रुपमान-शान हुगा । सब मनुष्य मरेंगे। शप-सम्बन्धी ज्ञान हमें प्राप्तजनों या विश्वस- हम मनुप्य है। नीय लोगों से होता है। प्राप्त-याफ्यों का प्रर्य है- इस लिए हम भी मरेंगे। यथार्थ बालने पालो का कथम । पेदवायों की ऊपर के कथनी पार परिस्टाटस के इन पाक्यों गणमा शासकारों ने प्राप्तवाफ्यों में की है। में अनुमान ही प्रधाम है। इनमें अनुमाम ही यथार्थ शाम होने के अन्य कारखी को छोकर से अमीर सिटि की गई है। मगरेजी में अनुमान अनुमाम पर हमें कुछ पार कहना है । मनुमाम दो करने की इस प्रणाली का माम Srllogistin है। प्रकार का होता है-एक स्मार्थ, दूसरा पराप। प्रम अाप अपमे न्यायशाल की अनुमान-प्रणाली इमने रसोईघर में देखा कि प्राग जर रही है देखिए । हमारे यहाँ किसी बात के यथार्य हान होने पार उससेधुआं निकल रहा है। इससे हमें “यत्र यत्र के चार कारण माने गये हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, घूमरसत्र तत्राप्तिा" की व्याप्ति का भान हुा । इसी उपमान पार पाए । व्याप्ति के सहारे पर्वत से पुर्णा मिकरसे देखें हमने