पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/२६६

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• सच्या..] सरसनता का दण्ड। - ~~imm...mmmmmmmmmmmm स्वान्धि महात्मा के हायो पात वये। उनका मगर शीघ्र हो पास्मा में उन्हें लगा दिया- काईबस म था। इजिनियर साहब मे एक सम्मी पाह! मैं किस भ्रम में पड़ा हुमा हूँ। क्या उस सांस थींची। सारी प्राशायें मिट्टी में मिल गई। यात्मिक पयिप्रता को, मो मेरी मासम्म की कमाई क्या सोचते थे, क्या हो गया ! मिकल होकर कमरे है, कपल थोड़े से घन पर अर्पण कर हूँ। मैं सो में टहलमे लमे- अपने सहकारियों के सामने गर्व से सिर उठाये उन्होंने जरा देर पीछे पम को उठा लिया और घलता या, जिससे मोटरकार पाले मेरे मागण अन्दर पसे। विचार था कि रामा को यह पत्र प्रांखें महीं मिळा सफवे ये, यही प्राम अपने उस सुनायें । मगर फिर स्वाळ पाया कि यहाँ सारे गौरव पार मान को-अपनी सम्पूर्ण मास्मिक सहानुभूति की कोई पाशा नहीं। क्यों अपनी निर्वलवा सम्पत्ति को-दस पांच हजार रुपयों पर स्याग हूँ। दिमाऊँ क्यो मूर्ख पर्ने ? यह बिना प्यार कहे न ऐसा कदापि नहीं हो सकता। रहेगी । यह सोच कर ये मांगन से लौट गये। म उस फुधेटा को परास्त करने के लिए, ____ सरदार साहव स्थमाव के दयालु थे। पौर, जिसने सण मात्र के लिए उन पर विजय पा लिया . कोमल प्य मापत्तियों में स्थिर नहीं रह सकता। था, ये उस सुनसान कमरे में ज़ोर से ठहा मार कर ये पुन पौर म्गाने से भरे हुए सोच रहे थे कि हंसे । चाहे यह हंसी उन पिठौ मे पौर कमरे की मैंने ऐसे कान से कर्म किये हैं जिनका मुझे यह फल दीवारो मे सुनी हो चाहे म सुनी हो, मगर उनकी मिल रहा है। परसो की वाइप के बाद जो कार्य प्रात्मा मे अपश्य सुनी। उस पारमा को एक कठिन सिर हुमा था यह क्षणमात्र में नए हो गया । अथ परीक्षा से पार पाने पर परमानन्द पा । वह मेरे सामर्थ्य से बाहर है । मैं उसे नहीं संभाल सरदार साहब ने उम बिलों को उठा कर मेज़ सकता । चारों पर अन्धकार है। प्राशा का प्रकाश के मोचे सास दिया । फिर उन्हें पैरों से सूप महीं । कोई मेरा सहायक महीं। उनके मेत्र समल कुषल्ला । तब इस मारी विमय पर मुसकराते हुए हो गये। घे अन्दर गये। ' सामने मेज़ पर ठेकेदारों के पिछ सो एप ये।घे कई सप्ताह से यों ही पड़े थे। सरदार पड़े इम्झिनियर साहव नियत समय पर शाह- ' साहप मे उन्हें बोल कर भी न देखा था। माम इस जहाँपुर पाये। उनके साथ सरदार साहब का ___ मात्मिक ग्लानि पार नैपश्य की अयस्था में उन्होंने धर्माम्य भी पाया । जिले के सारे काम अधूरे पड़े इन यि को सतृप्य पाखो से देखा । जरा हुए थे। उनके सानसामा ने कहा-"इजर ! काम । से इशारे पर ये सारी कठिनाइयां दूर हो सकती कैसे पूरा हो । सरदार साहब ठेकेदारों को याद ६ । पपरासी पार लाई केवल मेरी सम्मति के तड़करते है"। हेरलार्क मे वार के दिसाव को सहारे सब कुछ कर लेंगे। मुझे जबाम हिकाने भ्रम पार भूसी से भरा हुआ पाया। उन्हें सरदार की कोई जरूरत नहीं। न मुझे छशित ही होना सादव की तरफ़ से न कोई पावत दी गई, न कोई पड़ेगा। इन विचारों का इसमा प्राबल्य हुमा कि मेंट। तो क्या थे सरदार साहब के कई मातेदार थे थे पात्रय में बिलो को उठा कर गौर से देखने सो गलतियां मनकासते! पार हिसाप मगाने लगे कि उनमें कितनी निकासी मि के ठेकेदारों में एक बहुमूल्य राली समाई · हो सकती है। और उसेब इस्जिनियर साहब की सेवा में लेकर