पृष्ठ:सरस्वती १६.djvu/६४८

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___संध्या ३] - मनुष्य मीयन पार पुरुषार्थ । ३९३ Haman m का मैल धुळ गया। मित्रता की मुरमाई लता करते हैं कि ममुप्प प महीम समता । पर अपने भाम फिर हरी हो गई। या देव केदाप का सिलोना मात्र है। माम्प ग्मे और प्रेमसम्द पाइतामा माप मचाता । मुख और सफलता न इसके माम्म में बदी तो मिचेगी, प्रम्यथा नहीं। म्सके माग्य में इस पर प्रकार्यता मिली तक मनुष्य-जीवन और पुरुषार्थ । संसार में दुन्त ही मेगप्ता और किसी काम में इट प्रय नहीं होता। ऐसे मेोग बड़े ही साहसीम और [रेला, बापू मगम्मोहन बा] मावती ते वे अपने सीवन को मिली की कर मोके पशुम मूर्म निविकमती समी। प्पतीत मते। ऐसे में पानी कम नहीं पाये गये हमारे देश के दुर्भाग्य से पे पुराने सम्प से हो पन से भर #सार में कोई बहुमूल्य पीर दुम पदार्थ बासमती प्रति माये हैं । इम माम्मानों का सियत- जा और दुखको निमृति से मनुष्य का मायुः च विचक्ष विपामिभनमेन। पवानी सम्पन्ते गर्मस्वस्पैच देहिना ।। १ . पम्पन पुस्या है। जीवन होने से ही ममुप्प इन बातों बिए प्रससया पेमे पुलपापडी मेस अपनी निती है। संसार के सभी प्राणियों या फितुमसे समाज, पंश पीर मसर को भी बड़ी शनि इया रातीम वीर्घायु हो। सप लोग. पाती। मिसमम, बानते हैं कि संसार ही सारी सम्पत्तिम मुसार सफलता म माम्पवर और न करवाय करने पर भी कोई किसी की माने एक पर मी नहीं पाता इमारे पुष्पार्य का पीना है। मनुष्य को सब बढ़ा सम्ता । इतना बामस्प पदार्म पाम भी ममुप्प पपिकार प्रास किप अपने जीवन प्रेचा शुभार सोही तक म्पपोगी बनाता , उसके द्वारा अपने बना, चाहे दुलमय । समता प्राप्त करना या नरम पौर परापेक्षित सिए कितना काम करता, इस पर ___ मंग्सी के समान है। मनुष्य पाप दी अपना विमा समरिपात र पाबम्प में बार कहा- पवार बोकम रह गाते हैं।पा पदार्म इतना गमय । म्दामनामान मामानमवसादयेत् । कि इसकी पारी मारे संसार की सम्पत्ति और ऐसी प्रामप याममा यमप हितमारमा मिन कर नहीं कर सकते । मेोग बागम कर ऐसी पीय अर्यात्- मनुष्य रे रचित है कि प्रापही अपने का इस प्रकार स्पयोग करते Fमानो तं पानी के नर होने से बचाये । अपने को दुम्प में म पड़ने । मनुष्य माव-पिमा मूएप-मिवती है। फिर भी गर्व पर भापही अपना राम और भापही मपमा मित्र। हम संसार में सर्वा । संसार में भाश दो मार से होवा-पक कापत, दमो मितनको पर मछे सुना है कि मनुष्य का दूसरा मनुष्याला कामात मायामो प्रतिष्ठि, भगा- जीवन परिमित है। इसमें बह रही क्या सकता है ? से दृष्टि अपपा प्रम्ब किसी भातिक प्रकोप मावि से होता है। सैको काम है। किसे कने, पिसेनमे। ऐसे गोग गीवन रसका प्रतिरोध मानब शकिके बाहर है। मनुप्पहत मात्र मर सम्प की तकी का रोना रोया करते हैदप की दुई- है जिसे मनुष्य स्पर्ष, कोष, काम, मोभ, मोहपावि बता के कारस अपना पेर पारने के सिवा पार रुप मदर्दी मानसिक बिगोपीमून कर करता है। इन दोनों म सकते। में पस्तिम मांग प्रत्यन्त दाम्प और सस्ताप है। कितने ही कोमों का सिवात कि ममप और मनुप्प के किये हुए कम मतीपर देवता मी नहीं कर सकते। सस्यतानिमसपा माम्य अधीन है। कहा हम लोग अपना बिनास सयंमते ६ दियाइने से समान