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सर्वोदय

आगे चलकर करेंगे।

हम सचाई के मूल के सम्बन्ध में पहले ही कह चुके है। कोई अर्थशास्त्री उसका जवाब इस प्रकार दे सकता है—"यह ठीक है कि पारस्परिक स्नेह-सहानुभूति से कुछ लाभ होता है, परन्तु अर्थशास्त्री इस तरह के लाभ का हिसाब नहीं लगाते। वह जिस शास्त्री की विवेचना करते है वह केवल इसी बात का विचार करता है कि मालदार बनने का क्या उपाय है। यह शास्त्र गलत नहीं है, बल्कि अनुभव से इसके सिद्धान्त प्रभावकारी पाये गये है। जो इस शास्त्र के अनुसार चलते है वह निश्चय ही धनवान होते है और जो नही चलते है वह कङ्गाल हो जाते है। यूरोप के सभी धनिकों ने इसी शास्त्र के अनुसार चलकर पैसा पैदा किया है। इसके विरुद्ध दलीले उपस्थित करना व्यर्थ है। हरेक तजरबेकार जानता है कि पैसा किस तरह आता और किस तरह जाता है।"