पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१२२

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स्थापना करनेवाले राष्ट्रों के यूरोप में प्राप्त पद के अनुपात से बिल्कुल भी मेल नहीं खाती। यूरोप की प्रभुत्वपूर्ण ताक़तें, उसके भाग्य का फैसला करनेवाली ताक़तें , पूरी दुनिया में उसी अनुपात से छायी हुई नहीं हैं। और चूंकि औपनिवेशिक ताक़त उस सम्पदा पर जिसे अभी तक आंका नहीं गया है, अपना कब्जा जमाने की आशा, यूरोपीय ताक़तों की आपेक्षिक शक्ति पर स्पष्टतः अपना असर डालेगी, इसलिए उपनिवेशों का प्रश्न यदि आप चाहें तो इसे 'साम्राज्यवाद' कह सकते हैं - जो स्वयं यूरोप की राजनीतिक परिस्थितियों में सुधार कर चुका है, उनमें अधिकाधिक सुधार करता जायेगा।"*[१]

७. साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की एक विशेष अवस्था

ऊपर साम्राज्यवाद के विषय पर जो कुछ बताया गया है उसे अब हमें सार-रूप में प्रस्तुत करने की, उसे समेटने की, कोशिश करनी चाहिए। साम्राज्यवाद का उदय आम तौर पर पूरे पूंजीवाद की मूलभूत लाक्षणिकताओं के विकास तथा उसी क्रम की एक कड़ी के रूप में हुआ। परन्तु अपने विकास की एक निश्चित तथा अत्यंत ऊंची अवस्था में पहुंचकर ही पूंजीवाद पूंजीवादी साम्राज्यवाद का रूप धारण कर सका , ऐसी अवस्था में पहुंचकर जब उसकी कुछेक मूलभूत लाक्षणिकताएं बदलकर अपनी उलटी बनने लगीं, जब एक उच्चतर सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में पूंजीवाद के संक्रमण की विशेषताएं एक निश्चित रूप धारण कर चुकी थीं और हर जगह अपने आपको प्रकट कर चुकी थीं। आर्थिक दृष्टि से, इस प्रक्रिया


  1. J.E. Driault, «Problèmes politiques et sociaux», पेरिस १९०७ पृष्ठ २९९।

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