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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१३९

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इस प्रकार हम देखते हैं कि इस समय कुल जितनी रेलवे लाइनें हैं उनका लगभग ८० प्रतिशत भाग पांच सबसे बड़ी ताक़तों के हाथों में केंद्रित है। परन्तु इन रेलों के स्वामित्व का संकेंद्रण, वित्तीय पूंजी का संकेंद्रण, इससे भी कहीं ज़्यादा है, क्योंकि, उदाहरण के लिए, अंग्रेज़ तथा फ्रांसीसी करोड़पतियों के पास अमरीकी, रूसी तथा अन्य रेलों के बहुत बड़ी-बड़ी रक़मों के शेयर तथा ब्रांड हैं ।

अपने उपनिवेशों की बदौलत ग्रेट ब्रिटेन ने "अपनी" रेलों की लम्बाई में १,००,००० किलोमीटर की वृद्धि कर ली है, अर्थात् जर्मनी की तुलना में चार गुनी। फिर भी यह बात सर्वविदित है कि जर्मनी में उत्पादक शक्तियों का विकास, विशेष रूप से कोयले तथा लोहे के उद्योगों का विकास, इस काल में - फ्रांस तथा रूस की बात तो जाने दीजिये - इंगलैंड की तुलना में भी बहुत ही ज्यादा तीव्र गति से हुआ है । १८९२ में कच्चे लोहे का उत्पादन जर्मनी में ४९,००,००० टन और ग्रेट ब्रिटेन में ६८,००,००० टन था; १९१२ में जर्मनी का उत्पादन १,७६,००,००० टन हो गया और ब्रिटेन का ९०,००,००० टन। इस प्रकार इस मामले में जर्मनी की श्रेष्ठता इंगलैंड के मुकाबले में कहीं अधिक थी !*[] सवाल यह है कि एक ओर तो उत्पादक शक्तियों के विकास तथा पूंजी के संचय और दूसरी ओर उपनिवेशों के विभाजन तथा वित्तीय पूंजी के लिए “प्रभाव क्षेत्रों” के बीच जो विषमता थी उसे दूर करने का पूंजीवाद के अंतर्गत युद्ध के अतिरिक्त और क्या उपाय हो सकता था ?


  1. * Edgar Crammond, «The Economic Relations of the British and German Empiress ( ब्रिटिश तथा जर्मन साम्राज्यों के आर्थिक संबंध ) शीर्षक लेख भी देखिये , जुलाई १९१४, पृष्ठ ७७७ तथा उसके आगे के पृष्ठ।

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