पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/१६५

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निर्यात और ऋणों के पारस्परिक संबंध का पता लगाते हुए लैंसबर्ग लिखते हैं:

"१८९०-९१ में जर्मनी के बैंकों की मारफ़त रूमानिया के लिए क़र्ज़ जुटाया गया, जिन्होंने इस क़र्ज़ में से इससे पहले ही के वर्षों में पेशगी रक़म दे रखी थी। यह क़र्ज़ मुख्यतः जर्मनी में रेलों का सामान खरीदने के लिए था। १८९१ में जर्मनी ने रूमानिया को ५,५०,००,००० मार्क का माल निर्यात किया। अगले वर्ष यह रक़म गिरकर ३,९४,००,००० मार्क, और कुछ उतार-चढ़ावों के बाद १९०० में २,५४,००,००० मार्क रह गयी। अभी पिछले कुछ वर्षों में जाकर दो नये ऋणों की बदौलत यह निर्यात फिर १८६१ के स्तर पर पहुंच पाया है।

"१८८८-८९ के ऋणों के बाद पुर्तगाल को जर्मनी से भेजे जानेवाले माल की कीमत बढ़ते-बढ़ते (१८९० में) २,११,००,००० हो गयी; फिर इसके बाद के दो वर्षों में वह घटते-घटते १,६२,००,००० और ७४,००,००० रह गयी और १९०३ में जाकर फिर अपने पिछले स्तर पर पहुंच गयी।

"अर्जेन्टाइना के साथ जर्मनी के व्यापार के आंकड़े और भी सारगर्भित हैं। १८८८ और १८९० में जुटाये गये ऋणों के बाद अर्जेन्टाइना को जर्मनी का निर्यात १८८९ में ६,०७,००,००० मार्क तक पहुंच गया। दो वर्ष बाद यह निर्यात केवल १,८६,००,००० मार्क तक ही पहुंचा, अर्थात् पिछली राशि की तुलना में तिहाई से भी कम। १९०१ में जाकर ही निर्यात १८८६ के स्तर तक पहुंच गया तथा उससे बढ़ सका और वह भी राज्य तथा नगरपालिकाओं द्वारा जुटाये गये ऋणों की बदौलत, बिजली के सामानों के कारख़ाने बनाने के लिए पेशगी देकर और ऋणों के अन्य लेन-देन के कारण।

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