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पृष्ठ:साम्राज्यवाद, पूंजीवाद की चरम अवस्था.djvu/६६

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जाता है और जिसका यह मत है कि साम्राज्यवाद एक राष्ट्र विशेष की एक बुरी आदत है ...

पर “होल्डिंग की पद्धति" इजारेदारों की शक्ति को बेहद बढ़ाने का ही काम नहीं करती, वह उन्हें इस बात के भी योग्य बनाती है कि वे पब्लिक को धोखा देने के लिए बेखटके तरह-तरह की गंदी और चोट्टेपने की तिकड़में कर सकें, क्योंकि "मां कम्पनी" के संचालकों पर क़ानूनी तौर पर "बेटी कम्पनी" की कोई जिम्मेदारी नहीं होती, जिसे स्वतंत्र समझा जाता है और जिसके माध्यम से वे कुछ भी “उलट-फेर कर सकते हैं।” यहां हम मई १९१४ की «Die Bank» नामक समीक्षा-पत्रिका से लिया गया एक उदाहरण दे रहे हैं :

"कैसेल स्थित 'स्प्रिंग स्टील कम्पनी' कुछ वर्ष पहले जर्मनी का एक अत्यंत लाभप्रद कारोबार समझी जाती थी। बुरी व्यवस्था के कारण उसका डिवीडेंड १५ प्रतिशत से गिरते-गिरते कुछ भी नहीं रह गया। जैसा कि मालूम हुआ इस कम्पनी के बोर्ड ने शेयरहोल्डरों से परामर्श किये बिना ही अपनी एक 'बेटी कम्पनी' 'हासिया लिमिटेड' को, जिसके पास केवल कुछ लाख मार्क की मूल पूंजी थी , साठ लाख मार्क का ऋण दिया था। इस ऋण का उल्लेख , जो 'मां कम्पनी' की पूंजी के लगभग तिगुने के बराबर था, उसके देयादेय-फलक में कहीं नहीं किया गया। इस बात का उल्लेख न करना बिल्कुल क़ानूनी था और उसे पूरे दो वर्ष तक छिपाये रखा जा सकता था क्योंकि इससे कम्पनी कानून का कोई उल्लंघन नहीं होता था। उसके निरीक्षण-मंडल का अध्यक्ष , जिसने उत्तरदायी प्रधान की हैसियत से इस झूठे देयादेय-फलक पर हस्ताक्षर किये थे, उस समय कैसेल के चैम्बर आफ कामर्स का अध्यक्ष था और अभी तक है। शेयरहोल्डरों को इस 'हासिया लिमिटेड' को ऋण दिये जाने की बात का पता बहुत बाद में जाकर उस समय लगा जब यह सिद्ध हो चुका था कि यह एक भूल थी"... (लेखक को यह शब्द उद्धरण-चिन्हों के

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