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पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१०९

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[ १०८ ] न समता जोग । पै भष कनक रुद्र रंग तंत्री सुन आद भर भोग॥ याही तें सब कों उपजावत सुप मद महावियोग। थिर न रहत इक थानन छांडत सरज अदभुत लोग ॥ ११५ ॥ उक्त नाइका की सगी सों के तेरे (तूने) जो नीकन अछन ने अदभूत बान लई है आयु ग्रेड नाही तजत पर उर में स्कूल सई करत है वा जल पचर आकास चर वनचर मीन पंजन चकोर सग समता नाही पावत पय नाम अमृत झष मीन कनक हाटक रुद्र रंगलाल तंत्री बीना सुनपा आदि बरन ते अमीहाला विष ते जरे हैं याही ते सब को उपजावत है सुष जीवन मद महा वियोग मरन थिर अलप नाहीं रहत (हैं) अरु थान नाही छांडत यह अदभुद बात है इन की ॥ ११५॥ टिप्पणी-सरदार कवि ने इस भजन को दूसरे स्थान पर भी लिखा है और अर्थ में घटाया बढ़ाया है अतश्च ज्यों काल्यों का नीचे लिखा जाता है। नीतन नयनन का बान लई । बाचर मीन घचर पंजन बनचर मग हार रहे ॥ पय अमत झत्र मीन कनक हाटक रुद्ररंग लाल तंत्री बीना सुन ष आदि तें अमी हाली विष भरे हैं ॥ यातें मुष मद महावियोग मरन थिर नाही रहत थान नही तजत ॥ ५१ ॥ _ अदलपतिरिमुपितापतनो अब न जैहैं फेर । बातसुतस्नाताअप्रिय के बिनु सुभाव न हेर॥ भानुतपन किसान ग्रह के रछपालक आद। म ठाटो होत नंदननँद कर उनमाद॥ नदिन के उर ।