पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/११५

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1 ११४ । कृष्णचंद(५)उदारचंद जो रूप चंद सुभाडू। बुधचंद प्रकास चौथो चंद भै सुभदाइ। देवचंद प्रबोध संसृत (द)चंद ताको नाम । भयो सही नाम सूरज चंद नंद निकाम॥ सोसमर करिसाहिशेवक गटी (७)विध के मा AN समाधान करता है । शब्द ब्रह्म (सं० शब्दात्मकं ब्रह्म) शब्द का प्रयोग चंद की व्याकरण और वेदान्त विद्या के ज्ञान का घोतक है। गुरुप्रसाद शब्द यहां श्वेषार्थ में कवि ने प्रयोग किया है क्योंकि ख्यातियों के अनुसार चंद के विद्या गुरु का नाम गुरुप्रसाद था । यद्यपि कुछ विशेष वृत्त नहीं मिलते तथापि यह गुरुप्रसाद नामक पंजाब देश का रहनेवाला एक बड़ा पंडित हुआ है । कवितह चंद की हिन्दी का निज प्रयोग है और उस का अर्थ कवित्त अर्थात् काव्य रचने वाले कवि का है । किसी २ पुस्तक में जो बरबंदि, अमल, अबल, लयपूर, महि, तिाह और प्रसन्न पाठ हैं वे अशुद्ध हैं।' ____फिर लिखा है। 'बिहु बाह सूर सज्जे समंत । बेनै बिरद्द बंधे अनंत ॥ छंद ॥ ६२३ ॥ ____ यह छंद सं० १६४७ } १७७० और १८४६ की पुस्तकों में नहीं है किन्तु सं० १८५९ की लिखी में है। इस छंद की अंत की तक में "बेनै बिरद्द बंधे अनंत है कि जिसका अर्थ यह होता है कि वेन ने अनेक विरद्द बांधे अर्थात् कहे । यह वेन कवि इस महाकाव्य के रचनेवाले चंद का पिता था और वह सोमेश्वर जी के इस समय साथ था । अब तक चंद से पहिले का कोई काव्य किसी भी कवि का किसी के जानने में नहीं है किन्तु हम ने जो एक चंद छंद वर्णन की महिमा नामक पुस्तक सं० १६२९ की लिखी शोध कियी है उस के पीछे मेवाड राज के महा- राणा जी श्री उदयसिंह जी के महाराजकुमार श्रीसगतसिंह जी के पंडित विष्णु- दास जी ने अकबर बादशाह के भाट गंग जी से अजमेर में पटोलावाय के मकाम पर चंद के बाप कवि राव वेन का नीचे लिखा छप्पय अर्थात् कवित्त लिखा था ।