त्रिय चढत सीस गिरधर के सो अब कंठ गहीरो ॥ नीचे चलत तासु अरिता भख भूषन अंग लगोरी। दधिसुत बाहन मेखला लेके बैठि अनईस गनोरी ॥ ताते सुक महक बक तीतर यह मति दसन गहो री। कनक दहन षट अरु दस मिलि के सोई उतारी धरोरी ॥ बैरागी के बगल बसतु हैं,तापर प्रीति करोरी। सूर श्याम प्रभु रस की बातें मधुपुर दूरिगनोरो॥५२॥ उधो जी कहत हैं कि सब मिलि के श्याम के सन्देस सुनो । जो त्रिय गिरधर के सीस पर चढ़ती है अर्थात तुलसी सो तुलसी की माला कंठ में धारण करो अर्थात् पहनो । नीचे चलता है जल अरि आग भख नाम भभूत उसी का भूषण बनाव । दधिसुत चन्द्रमा बाहन मृगा सो मृगा के चमरा ले कर अनईस जो श्रीकृष्ण सो श्रीकृष्ण को ध्यान धरो। सुक कहिये सुग्गा अर्थात् सुग्गा के रंग जो पान और महुक जो है पक्षी तिस का रंग कथ पक जो बकुला तिस का रंग चूना और तीतीर के रंग जो कसेली अर्थात् पान मत खाव । कनक सोना दहन करनेवाला सोहागा सो सोहागा माने सोलहो शृंगार मत पहनो । बैरागी के बगले रहता है तुम्बा सो- अब तुम्बा पर नेह करो। सूरश्याम जो हैं कृष्णा सो अब श्रीकृष्ण सो रस की बात .. जाने दो क्योंकि मधुपुर जो मथुरा है उस को दरि जानो ॥ १२ ॥ सखी री कमल नैन परदेसे ॥ ऋतु के राज भए संप्राप्त ताते गये बिदेसे। हरहित रिपु वाहन के भोजन पठए न
पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१६४
दिखावट