पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१६६

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(उपसंहार अक्षर ) ग सूरदास का जीवनचरित्र । एक सौ अठारह पद की टिप्पणी में लिखा है कि ग्रंथ के अंत में सूरदास के विषय में लिखा जायगा। अतएव यहां इस समय मुझे जहां तक सूरदास के विषय में लेख मिला है उन सबों को यहां प्रकाश करता हूं। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने चरितावली और शूरसतक पूर्वार्द्ध में जो लिखा है उसे छोड़ देता हूं। सूरदास के समय से अनेक कवियों का समय निर्णय होगा। रामरसिकावली-महाराज रघुराज सिंह कृत से- दोहा-सूरदासजी जग बँदित , श्री उद्धव अवतार । कथा पुरानांतर कथित , बरनन करो उदार ॥१॥ चौपाई। नब मथुरा में श्रीनंदलाला । गोपिन को बिज्ञान विसाला ॥१॥ सादर करन हेत उपदेसू । पठयो उद्धव गोकुल देसू ॥२॥ तहं गोपिन पर प्रेम परेषी । उद्धव बोले ज्ञान बिसेषी ॥३॥ पारि भक्तिहरि निजउर माहीं। आवत भे पुर मथुरा काही ॥४॥ राषि भाव उर गोपिन केरो । लष्यो संग हरि चरित घनेरो ॥५॥ तब उद्धव को श्रीजदुराया । बदरीनाथ कांह पठवाया ॥६॥ यह सुवासना ऊधव के तब । रही आय व्रज येक बार कब ॥७॥ गोपिन को अनूप अनुरागा। हरिलीला जो व्रज सब जागा ॥८॥ सो रसना ते बरनन करहूं । बर संतोष हिये पर धरहूं ॥९॥ कीन्हे यही बासना कांही । उद्धव प्रगट भये कलि मांही ॥१०॥ सूरदास ते. संत सिरोमनि । बिरचन सवालाख पद को गुनि ॥११॥ करि संकल्प मुदित मनसा मे । हरि लीला विभूति हू तामे ॥१२॥ दोहा-बरन्यौ तिमि गोपीन को, जो जथार्थ अनुराग । बिरचे कृष्णपद सूर बदि, सहस पचीस अदाग ॥२॥ पूरन कीन्हो सूर मन , सूरस्याम जहं होय ।