पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

और कविन अनूठी उक्ति मोहि लगी जूठी जांनि जूठी सूरदास की ॥२॥ अपिल अनूठी उक्ति जुक्ति नहि झूठी नेकु सूधाई ते सरस सरस को सुनावतो। उद्धतं बिराग माग सहित अनेक राग हरि को अदाम अनुराग को सिषावतो ॥ जगत उजागर अमल पद आगर सुनट नागर ध्याय सूरसागर को गावतो। भाषै रघुराज राधा माधव को रास रस कौन प्रगटावतो जो सूर नहि आवतो ॥३॥ साह सुन्यो सुरन से बेग- ही बलायो डिल्ली पूछयौ कोन हो तूं सूर कह्यौ पूंछो बेटी सों। साह कयौ जानौ कैसे सूर कह्यौ जंघ तिल साह पूंछवायो सो तुरत एक चेटी सों॥ कन्या कयो कहत तुरंत ही सरीर छूटी हठरे कहि तन तजि हरि भेटी सों। मनै रघुराज साह सूर पद सिरनायं पूछ हरिदास मोरि भवभीति भेटी सों॥४॥ गोकुल मे रास होत राधा जूने मान कीन्हो हरि मान मोरिबे को उद्धवै पठायौ है । जानि गुरमान कह्यो नेसुक कटुक बैन दीनी वृषभानसुता साप को पछायो है॥ धारी ये मनुज तन तारिये जगत जाइ सकल सुनाइये जो रास रस भायो है । भनै रघुराज सोई ऊद्धौ अवनी में आइ रसिक सिरोमनि सो सूर कहवायो है ॥ ५ ॥ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'शिवसिंहसरोज' पढ़ने के समय में जिन जिन कवियों के विषय में कुछ लिखा है उन में अकबर और गंग के इतिहास पर अपनी राय नाम मात्र को लिखी हैं उसे नीचे प्रकाश करता हूं। अकबर।। अकबर बादशाह दिल्ली सं० १९८४ हुए इन के हालात में अकबरनामा १ आईन अकबरी २ तवकात् अकबरी ३ तारीख अबदुल्कादिर बदा- जनी ४ इत्यादि बड़ी बड़ी किताबें लिखी गई हैं जिन से इस महाप्रतापी बादशाह का जीवनचरित्र साफ़ साफ़ प्रगट होता है इहां केवल हम को उन की कविता का वर्णन करना अवश्य है सो हम को कोई ग्रंथ इन का नहीं मिला दो चार कवित्त जो मिले हैं सो हम ने लिखा है जहांगीर बादशाह ने अपने जीवनचरित्र की किताब तुजुक जहांगीरी में लिखा है कि अकबर बादशाह कुछ पढ़े लिखे न थे परंतु मौलाना अबदुल्कादिर की किताब से प्रगट है कि अकबर शाह संस्कृत महाभारत को एक रात आप ही उलथा कराने बैठे और सुलतान मोहम्मद थानेसरी औ खुद मौलाना बदायूनी औ शेख फैजी ने जहां जहां कुछ आशय छोड़ दिया