पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/२०१

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१प्रेमतरंग २ भावबिलास ३ रसबिलास ४ रसानंदलहरी ५ सुजानबिनोद ६ काव्यरसायन पिंगल ७ अष्टयाम ८ देवमायाप्रपंचनाटक ९ प्रेम- दीपिका १० सुमिलविनोद ११ राधिकाविलास।। देव ( काष्टजिह्वा स्वामी ) काश्यस्थ । १९११ ए महाराज पंडित राज पदशास्त्र के वक्ता प्रथम संस्कृत काशी जी वें पदि दैव योग से एक • बार अपने गुरू से बाद करि पीछे पछिताय काष्ट की जीभ मुहं में डालि बोलना बंद कर दिया पाटी में लिखि कै बात चीत करते थे उन्हीं दिनों श्रीमन्ममहाराज ईश्वरीनरायण सिंह काशीनरेश ने इन से उपदेश लै रामनगर में टिकाया तब ए महाराज भाषा में नाना ग्रंथ बिनयामृत इत्यादि बनाए इन्ही के पद आज तक काशीनरेश की सभा में गाए जाते हैं। (१६) पजनेश कवि बुंदेल खण्डी १८७२ ए काये परना में थे औ मधुप्रिया नाम ग्रंथ भाषासाहित्य में अद्भुत बनाया है इस कवि की अनूठी उपमा अनूठे पद अनुप्रासें जमक तारीफ के योग्य हैं पर टवर्ग शृंगार रस में औ कटु अक्षरों से जो अपनी कविता में भरि दिया है इस कारण से इन की काव्य कवि लोगों के तीर रूपी जिह्वा की निशाना हो रही है इन का नखसिख देखने योग्य है इन्हों ने पारसी विद्या में भी श्रम किया था। ... (१७) घनआनंद कवि । १६१५ ए कवि कविलोगों में महाउत्तम कवि हो गए हैं। (१८) घनश्याम शुक्ल असनी वाले १६३५ ए कवि कविता में महानिपुण बांधवनरेश के इहां थे ग्रंथ तौ पूरा हम ने कोई नहीं पाया कवित्त २०० तक इन के हमारे पास हैं कालिदास ने भी इन के कवित्त हजारा में लिखे हैं। (१९) सुंदरकविब्राह्मण ग्वालियरनिवासी सं० १६८८ ये महाराज शाहिजहां बादशाह के कवि थे पहिले कविराय की पदवी पाया इन का बनाया हुवा सुंदर शृङ्गार नाम ग्रंथ भाषासाहित्य में बहुत सुंदर है इन्हीं कवि के पद में यह अगन परा था(सुंदर कोप नहीं सपने) यह कवित्त इस ग्रंथ में है। सुंदरकवि दादूजी के शिष्य मेवाड़देश के निवासी । इन की कविता