इन को छोटे बड़े विद्वान् भली भांति जानते हैं कि ए फैजी अरवी पारसी संस्कृत भाषा में महानिपुण थे इन का ग्रंथ भाषा में हमने नहीं पाया केवल दोहरा मिले हैं ए अकबर के कविं थे। (४१) ब्रह्मकवि राजा वीरवर ब्राह्मण अंतरवदि वाले सं० १९८५ इनका नाम प्रथम महेश दास था ए कानकुब्ज दुबै भाग ज़िले हमीरपुर के किसी गांव के रहनेवाले थे काव्य पढ़ि लिखि राजा भगवानदास आवेर नरेश के इहां कांवे लोगों में नौकर हो गए राजा भगवान दास इन की कविता से बहुत प्रसन्न कै अकबर बादशाह को नज़र के तौर इनको दैदिया ए कवि काव्य में अपना नाम ब्रह्म करिकै वर्णन करते थे अकवर कविता के सेवाय इन में सब प्रकार की बुद्धि पाय पूर्व संस्कार के अनु- सार प्रथम अपना मित्र बनाय कविराइ की पदवी दिया तेही पीछे पांच हज़ारी का मनसब औ मुसाहेब दानिश बरराजै बीरबर का खिताब दिया. इनके जीवनचरित्र विचित्र तवारीखों में लिखे हैं सन् ९९० हिजरी में बिजौर इलाके काबुल में पठानों के हाथ से समर भूमि में मारे गए इनका समग्रग्रंथ तो कोई हमने देखा सुना नहीं पर इनकी कविताई बहुतही फुटकर हमारे पुस्तकालय में है सूरदास जी ने कहा है। दोहा । सुंदर पद कविगंग के, उपमा को घर वीर । केशव अर्थ गंभीर को, सूर तीनि गुण तीर ।। राजा बीरवर ने अकबर के हुकुम से अकबरपुर गांउ जिले कानपुर में बसाय आप भी अपना निवासस्थान उसी को नियत किया और नारे नौल कसवा में इन की पुरानी इमारतें बड़ी अलीशान आज तक मौजूद हैं. चौधराई का ओहदा जो बहुधा ब्राह्मणों को मिला औ गोवध बंद हुवा औ हिंदू मुलल्यानों में बहुत मेलजोल हो गया ए सच बातें इन्हीं महाराज की कृपा से हुई थीं। (४२) फहीम शेख अबदुल फजल फैनी के कनिष्ट सहोदर सं० १५८० इन के केवल दोहरा हमने पाये हैं ग्रंथ कोई नहीं मिला ए अकबर के वजीर थे। (४३) अभयराम सं० १६०२ कालिदास जीने इनकी काव्य अपने हजारे में लिखा है। । है।
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