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पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/६७

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[ ६६] राषत नीकन आगे सुंदर स्याम सरूप॥ दोइ जनम को राजा बैरी का बिध आप बनावै। करत अनुज्ञा भूषन मो को सूरस्याम चित आवै ॥ ६ ॥ उक्ति गोपी की ऊधो प्रत (कै हे ऊधो तब तें अब बहुत नीको है हम कों स्यामसुन्दर चिन बृज फीको नाही लागत) बायस शब्द का अजा को शब्द में मिलि कामै अर्थ काम ने बहुत नीक काम कियो है के नीकन कहे अच्छन को पास उन को राषत है दोइ जनम राजा चंद का बिध बनावत है सूर स्याम बिन अनुग्या अलंकार होत है उग्रता संचारी लच्छन । दोहा-होइ अनुग्या दोष में, जो लीजै गुन मान । जागि निंदन समर्थ ते, कहो उग्रता जान ॥१॥३९॥ बालम कौन सीषो बान । मुतन मो को सकुच आवत सुनत उन की ठान॥ देष भाजन होत कबहूं कहूं दीप समा- न। संभुमुतभूषन बतावत बदन आप प्रमान॥ रंग बद के सदस सब दिन करत नीकन जान । अंतरिछन सिंध सुत से कहत का अनुमान ॥ राहु भष के बंध से है तब कपोल सुभान । कहत सारंग बैन मुलगत हृदय सुन सुन तान ॥ रहत है जहां जीव इतनो समुझ इन