पृष्ठ:साहित्यलहरी सटीक.djvu/७१

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[ ७० ] दूजो जो गुन ना मिटत, किये मिटन के हेत ॥१॥७३॥ दुषी देपिये पित्र को, म्रतक स्राप जुत बंध । आज रन कोपो भीम कुमार। कहत सबै समुझाय सुनो सुत धरम आदि चित चार ॥ भादि रसाल जगफल के सुत जे बांधे अभिमान। सरजसुत के लोक पठावत से सब करत नहान॥ दसन राज जो महारथी सो आवत अग्र अनूप । सहित सैन सुत संग सिधारत सो सब सजे सरूप ॥ तंतपुत्र की हे का गनती जो सनमुष भट आवै । सुमन लोक तो अब या बेला भँवर संग उड जावै ॥ बैठे जदिप जुदिष्टर सामे सुनत सिषाई बात । भयो अतदगुन सूर सरस बढ बली बीर बिष्यात ॥७४॥ - उक्ति संजे की धृतराष्ट प्रति कै आजु भीम कुमार जो घटोतकच सो कोपो है सब को सुनाय कहत है कै घरमपुत्र आदि सब बीर (सूर) सुनो रसाल नाम अंब जग्यफल धरम आदिवरण ते अंध भयो ताके जे पुत्र हैं अभिमान से बंधे तिन को सूर्य सुत जम के लोक पठावत हो दसन नाम दुजराज जो द्रोन है महारथी अरु आगे आवत है तिन को पुत्र सैन समेत तेई तहां जैहैं तंतु कहे सूत पुत्र जो करन है ताकी का गनती है जो सनमुष हमारे आइहैं तो सुमन देवलोक को यही बेला में भँवर सिलीमुष नाम