पृष्ठ:साहित्यालाप.djvu/१४

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देवनागरी-लिपि का उत्पत्ति-काल

<br अस्तित्व ही नहीं उसके करने का कहीं निषेध होता है ? लेोग चोरी करते हैं; इसलिए पेनलकोड में चोर के लिए दण्ड का विधान किया गया है। यदि कभी चोरी हुई ही न होती, तो दण्ड का भय ही क्यों दिखाया जाता ? इस श्लोक में वेद-विक्रय की जो बात है उससे दो अर्थ निकलते हैं। एक तो वेतन के रूप में कुछ लेकर वेद पढ़ाना, दूसरा वेद लिख कर लिखी हुई पुस्तक को बेचना । यदि दूसरा अर्थ न भी ग्राह्य हो तो भी लेखकों को नरक में जाने का भय दिखाना इस बात को निर्विवाद सिद्ध करता है कि लोगों ने वेद को लिखना ज़रूर शुरू किया था । अन्यथा उनके लिए नरकगमन का डर दिखाने की कोई ज़रूरत न थी।

जब कोई नई बात निकलती है तब उसके प्रचार में बहुधा बाधा आती है। इस समय भी अनेक नई नई बातें करने की तरफ़ लोगों को प्रवृत्ति है; और कुछ लोग करने भी लगे हैं । परन्तु उन बातों की उपयोगिता का खयाल न करके पुरानी बातों के पक्षपाती उनका विरोध कर रहे हैं। इस उदाहरण से हम अनुमान कर सकते हैं कि जब पहले पहल लिपि-कला की उत्पत्ति हुई होगी, तब वेदों के समान पवित्र माने गये ग्रन्थों को अपवित्रनहीं तो तुच्छ, कागज़ और स्याही की सहायता से लिपिबद्ध करना लोगों को अच्छा न लगता होगा। अतएव उन्होंने तत्कालीन ग्रन्थों के लिखे जाने का घोर विरोध किया। बहुत सम्भव है कि मनुस्मृति और महाभारत के बहुत पहले वर्णमाला की उत्पत्ति हुई हो; पर नई आविष्कृति के कारण, लोगों के